Director
Kabir Khan directed the 2021 Hindi film “83”. Known for his knack for storytelling, Khan brought to life the iconic moment in Indian cricket history with his keen eye for detail and emotional depth.
Cast
The film features a stellar ensemble cast led by Ranveer Singh, who brilliantly portrays the legendary cricketer Kapil Dev. Deepika Padukone stars as Romi Bhatia, Kapil Dev’s wife, adding depth and warmth to the narrative. The film also includes a talented supporting cast such as Pankaj Tripathi, Tahir Raj Bhasin, Saqib Saleem, and Hardy Sandhu, each playing pivotal roles that contribute to the film’s authenticity.
Plot Overview
“83” chronicles the Indian cricket team’s remarkable journey to winning the 1983 Cricket World Cup. The film captures the trials, tribulations, and triumphs of the underdog team that defied all odds to bring glory to the nation. It is a celebration of passion, teamwork, and resilience, resonating with both sports enthusiasts and general audiences alike.
Significance
The movie not only serves as a tribute to one of India’s most significant sporting victories but also highlights the socio-political climate of the time. It delves into how this victory united the country and instilled a sense of pride and hope, making it a culturally significant piece of cinema.
🎙️🎬Full Movie Recap
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नमस्ते दोस्तों, मैं हूं आपका मेजबान और फिल्मों का दीवाना, जो हर बार आपके लिए लाता हूं भारतीय सिनेमा की कुछ खास कहानियां, भावनाएं और दर्शन। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जिसने न सिर्फ क्रिकेट के मैदान की जीत को पर्दे पर उतारा, बल्कि हर भारतीय के दिल में गर्व और जोश की लौ जगा दी। जी हां, हम बात कर रहे हैं फिल्म **’83’** की, जो 1983 के विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक जीत की कहानी बयान करती है। रणवीर सिंह की शानदार अदाकारी, दीपिका पादुकोण की भावनात्मक गहराई और पंकज त्रिपाठी की हल्की-फुल्की हास्य से सजी यह फिल्म हमें उस दौर में ले जाती है, जब भारत ने असंभव को संभव कर दिखाया। तो चलिए, इस कहानी को विस्तार से जानते हैं, इसके किरदारों को समझते हैं और उन पलों को फिर से जीते हैं।
परिचय: एक सपना जो सच हुआ
’83’ फिल्म कपिल देव (रणवीर सिंह) की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम की 1983 विश्व कप जीत की प्रेरणादायक कहानी है। यह फिल्म सिर्फ क्रिकेट के बारे में नहीं है; यह सपनों, हिम्मत और एकजुटता की कहानी है। उस समय भारतीय टीम को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। वेस्ट इंडीज की टीम, जो दो बार की विश्व चैंपियन थी, अजेय मानी जाती थी। उनके गेंदबाज माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर, एंडी रॉबर्ट्स और माल्कम मार्शल जैसे ‘फियर्सम फोर’ किसी भी बल्लेबाज के लिए काल थे। और अगर आप इनसे बच गए, तो विव रिचर्ड्स जैसे आक्रामक बल्लेबाज का सामना करना पड़ता। दूसरी ओर, भारतीय टीम में प्रतिभा तो थी, लेकिन एक टीम के रूप में एकजुटता और आत्मविश्वास की कमी थी। कपिल देव, जिन्हें ‘हरियाणा हरिकेन’ कहा जाता था, को टीम का कप्तान बनाया गया, लेकिन उनके सामने सात सीनियर खिलाड़ी थे और उनका पहला टीम मीटिंग घिसे-पिटे विचारों से भरा था। लेकिन कहते हैं ना, “सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो आपको सोने न दें।” कपिल और उनकी टीम ने ऐसा ही एक सपना देखा और उसे सच कर दिखाया।
कहानी: संघर्ष की शुरुआत
फिल्म की शुरुआत होती है 1983 में, जब भारतीय टीम लंदन पहुंचती है। हालात इतने खराब हैं कि टीम के पास ढंग का परिवहन तक नहीं है। टीम मैनेजर पीआर मैन सिंह (पंकज त्रिपाठी) 9800 रुपये का अतिरिक्त सामान शुल्क देकर भारत से अचार लाते हैं, क्योंकि वहां का खाना बेस्वाद है। खिलाड़ियों को दिन में सिर्फ 15 पाउंड भत्ता मिलता है और कपड़े धोने के लिए 10 पाउंड खर्च करने की बजाय उन्हें खुद धोने पड़ते हैं। अधिकतर खिलाड़ी शाकाहारी हैं, जो ब्रेड-बटर और अचार पर गुजारा करते हैं। लॉर्ड्स के मैदान में प्रवेश के लिए उनके पास पास तक नहीं हैं, क्योंकि किसी को उम्मीद नहीं कि भारत फाइनल तक पहुंचेगा। मैन सिंह ने तो सेमीफाइनल से पहले ही वापसी की टिकट बुक कर ली हैं।
कपिल की पत्नी रोमी भाटिया (दीपिका पादुकोण) हरियाणा में उनके पैतृक घर में रहती हैं और उनकी मां राज कुमारी निकहंज (नीना गुप्ता) चाहती हैं कि उनका बेटा भारत के लिए कप जीते। लेकिन टीम की हालत देखकर लगता है कि यह सपना दूर की कौड़ी है। अभ्यास मैचों में भारत लगातार हारता है। दर्शक टिकट खरीदने को तैयार नहीं, क्योंकि भारत को कोई गंभीरता से नहीं लेता। पत्रकार डेविड फर्थ कहते हैं कि अगर भारत विश्व कप जीतेगा, तो वे अपने शब्द खा लेंगे।
टीम में अनुभवी खिलाड़ी जैसे मोहिंदर अमरनाथ (साकिब सलीम) और सुनील गावस्कर (ताहिर राज भसीन) हैं, लेकिन आत्मविश्वास की कमी साफ दिखती है। कपिल खुद प्रेरणादायक भाषण नहीं दे पाते। लेकिन कहते हैं ना, “हारना तब तक नहीं, जब तक हार मान न लो।” और यही जज्बा कपिल और उनकी टीम को आगे ले जाता है।
चरमोत्कर्ष की ओर: असंभव को संभव करना
टूर्नामेंट की शुरुआत में भारत वेस्ट इंडीज को हराकर सबको चौंका देता है। यशपाल शर्मा (जतिन सरना) 89 रन बनाते हैं और एक रनआउट भी करते हैं। भारत 262/8 बनाता है और वेस्ट इंडीज को 228 पर रोक देता है। लेकिन इसके बाद दो लगातार हार (ऑस्ट्रेलिया और फिर वेस्ट इंडीज से) टीम का मनोबल तोड़ देती है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 320/9 के जवाब में भारत सिर्फ 158 पर सिमट जाता है। गावस्कर चोटिल हैं, कई कैच छूटते हैं। वेस्ट इंडीज के खिलाफ विव रिचर्ड्स 119 रन बनाते हैं और दिलीप वेंगसरकर को माल्कम मार्शल की बाउंसर से जबड़े में चोट लगती है, जिसके बाद वे टूर्नामेंट से बाहर हो जाते हैं। प्रेस में खबरें फैलती हैं कि कपिल ने गावस्कर को टीम से हटाया। पहली जीत को फ्लूक कहा जाता है। लेकिन कपिल का एक डायलॉग हमें याद दिलाता है, “हमें हर मैच में अपनी ताकत से ज्यादा खेलना होगा, तभी जीतेंगे।”
जिम्बाब्वे के खिलाफ मैच में भारत 17/5 और फिर 78/7 की भयानक स्थिति में पहुंच जाता है। बीबीसी तक इस मैच को कवर नहीं करता। लेकिन कपिल देव बल्ले से उतरते हैं और 175 रनों की ऐतिहासिक पारी खेलकर विश्व रिकॉर्ड तोड़ देते हैं। भारत 266/8 बनाता है और जिम्बाब्वे को 235 पर रोक देता है। यह पारी सिर्फ एक मैच की जीत नहीं, बल्कि टीम के आत्मविश्वास की जीत थी। कपिल का एक और डायलॉग गूंजता है, “अगर हम डर गए, तो जीतना भूल जाओ। हमें डर को हराना होगा।”
इसके बाद टीम ऑस्ट्रेलिया को आखिरी ग्रुप मैच में हराती है। सेमीफाइनल में इंग्लैंड का सामना होता है, जिसे भारत ने कभी इंग्लैंड में नहीं हराया। लेकिन अमरनाथ की जादुई गेंदबाजी और टीम के जज्बे से भारत 217/4 बनाकर जीत जाता है। पूरा देश इस जीत को देखने के लिए टीवी से चिपक जाता है। इंदिरा गांधी तक इस जीत को एक उत्सव में बदल देती हैं और विश्व कप को हर गांव-शहर में दिखाने का अभियान शुरू करती हैं।
चरमोत्कर्ष: लॉर्ड्स में इतिहास रचना
फाइनल में भारत का सामना फिर वेस्ट इंडीज से होता है। लॉर्ड्स में भारत ने कभी कोई मैच नहीं जीता। वेस्ट इंडीज टॉस जीतकर गेंदबाजी चुनती है। पिच हरी है और गार्नर की गेंदबाजी के सामने गावस्कर सस्ते में आउट हो जाते हैं। श्रीकांत 38 रन बनाकर लड़ते हैं, लेकिन भारत की बल्लेबाजी लड़खड़ा जाती है और स्कोर 183/10 पर सिमट जाता है, जो विश्व कप फाइनल का सबसे कम स्कोर है। लेकिन कहते हैं ना, “जब तक आखिरी गेंद बाकी है, हार नहीं मानी जाती।” भारत की गेंदबाजी शुरू होती है और बलविंदर संधू जल्दी विकेट लेते हैं। विव रिचर्ड्स तेजी से 33 रन बनाते हैं, लेकिन कपिल उस ऐतिहासिक कैच को लपककर उन्हें पवेलियन भेज देते हैं। इसके बाद नियमित विकेट गिरते हैं। वेस्ट इंडीज 76/6 पर सिमटती है। अमरनाथ डुजोन को आउट करते हैं और बिन्नी आखिरी विकेट लेते हैं। 25 जून 1983 को लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर भारत ने दो बार की विश्व चैंपियन वेस्ट इंडीज को हराकर इतिहास रच दिया। डेविड फर्थ ने अपने वादे के मुताबिक 23 जुलाई को लॉर्ड्स में अपना लेख खा लिया।
निष्कर्ष: जीत से ज्यादा, जज्बे की कहानी
’83’ सिर्फ एक क्रिकेट मैच की जीत की कहानी नहीं है। यह आत्मविश्वास, एकजुटता और सपनों को सच करने की कहानी है। कपिल देव और उनकी टीम ने दिखाया कि अगर हौसला हो, तो असंभव भी संभव हो सकता है। फिल्म के एक डायलॉग में कपिल कहते हैं, “यह कप सिर्फ हमारे लिए नहीं, पूरे हिंदुस्तान के लिए है।” यह डायलॉग हर भारतीय के दिल को छूता है। फिल्म की भावनात्मक गहराई, किरदारों की सच्चाई और 1983 की जीत का उत्साह इसे एक यादगार अनुभव बनाता है।
तो दोस्तों, ’83’ हमें सिखाती है कि हार के डर को हराकर ही जीत हासिल की जा सकती है। आखिरी डायलॉग के साथ मैं आपसे विदा लेता हूं, “सपने देखो, मेहनत करो, और जीत को गले लगाओ।” मिलते हैं अगले एपिसोड में, एक नई कहानी के साथ। नमस्ते!
🎥🔥Best Dialogues and Quotes
हम यहां कप जीतने आए हैं।
हमारे पास एक टीम है जो किसी को भी हरा सकती है।
यह टीम इंडिया है, इसे हल्के में मत लो।
जीतने का जुनून हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं।
क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, यह हमारी पहचान है।
हमारे सपने हमारे साहस से बड़े नहीं हो सकते।
हर गेंदबाज को उसकी गेंद से जवाब देना होगा।
हमारी ताकत हमारी एकजुटता में है।
हार मानने का सवाल ही नहीं उठता।
हम इतिहास रचने के लिए मैदान में उतरे हैं।
🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia
फिल्म ’83’, जो 1983 के क्रिकेट विश्व कप में भारत की ऐतिहासिक जीत पर आधारित है, के निर्माण के दौरान कई दिलचस्प और अनजाने पहलू सामने आए। सबसे रोचक बात यह है कि इस फिल्म के लिए अभिनेता रणवीर सिंह ने कपिल देव के रोल में ढलने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने न केवल क्रिकेट खेलना सीखा, बल्कि कपिल देव के बोलने और चलने के तरीके को भी आत्मसात किया। इसके लिए रणवीर ने कपिल देव के साथ उनके घर में समय बिताया और उनकी पुरानी वीडियो देखीं। सेट पर, क्रिकेट के मशहूर कोच बालविंदर सिंह संधू ने सभी कलाकारों को क्रिकेट की बारीकियां सिखाईं, जिससे फिल्म में असली खेल का अनुभव मिल सके।
फिल्म के निर्माण के दौरान, ’83’ की टीम ने असली स्थानों पर शूटिंग करने को प्राथमिकता दी। इंग्लैंड के मशहूर लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में शूटिंग करना एक बड़ा चैलेंज था। फिल्म की टीम ने इस स्थान को 1983 के दौर के हिसाब से सजाया ताकि दर्शकों को उस समय का अनुभव हो। इसके अलावा, शूटिंग के दौरान असली क्रिकेट खिलाड़ियों के जुड़ाव ने फिल्म को और अधिक प्रामाणिक बना दिया। खिलाड़ियों ने अपने अनुभव साझा किए और कई रोमांचक कहानियां बताईं, जो फिल्म की गहराई को बढ़ाती हैं।
फिल्म में कई ईस्टर एग्स (Easter Eggs) छिपे हुए हैं जो दर्शकों को उस समय की याद दिलाते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म में एक दृश्य है जहां कपिल देव की टीम को उनके होटल में रुकने नहीं दिया जाता, जो एक वास्तविक घटना पर आधारित है। यह दृश्य दर्शकों को 1983 के उस दौर की चुनौतियों की याद दिलाता है, जब भारतीय क्रिकेट टीम को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। इसके अलावा, फिल्म में कुछ छोटे-छोटे संवाद और दृश्य हैं जो उस समय की क्रिकेट की संस्कृति और खिलाड़ियों की जीवनशैली को दर्शाते हैं।
फिल्म ’83’ के पीछे की मनोविज्ञान भी काफी दिलचस्प है। यह फिल्म केवल क्रिकेट के खेल पर आधारित नहीं है, बल्कि यह टीम वर्क, विश्वास और नेतृत्व की कहानी भी है। कपिल देव के नेतृत्व ने पूरी टीम को एकजुट किया और उन्हें जीत की ओर ले गया। फिल्म यह दिखाती है कि कैसे असंभव को संभव बनाया जा सकता है जब टीम एकजुट हो और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो। दर्शकों को यह संदेश मिलता है कि आत्म-विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।
फिल्म का प्रभाव और विरासत भी व्यापक है। ’83’ ने न केवल क्रिकेट प्रेमियों को बल्कि आम दर्शकों को भी प्रभावित किया। यह फिल्म एक प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से भारतीय क्रिकेट इतिहास के उस सुनहरे पल को जीवंत करती है। इसके साथ ही, युवा पीढ़ी को यह समझने का मौका मिलता है कि 1983 की जीत ने भारतीय क्रिकेट के लिए नए द्वार खोले और विश्व स्तर पर भारत की छवि को मजबूत किया।
समापन में, ’83’ ने भारतीय सिनेमा और खेल जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। इस फिल्म ने न केवल पुराने दर्शकों को उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाई, बल्कि नई पीढ़ी को भारतीय क्रिकेट के गौरवशाली इतिहास से भी परिचित कराया। फिल्म की सफलता इस बात की गवाही देती है कि खेल से जुड़े भावनात्मक और प्रेरणादायक कहानियां हमेशा दर्शकों के दिलों को छूती हैं। ’83’ ने यह साबित किया कि सच्ची कहानियों का जादू कभी नहीं कम होता।
🍿⭐ Reception & Reviews
कबीर खान द्वारा निर्देशित, यह स्पोर्ट्स ड्रामा 1983 क्रिकेट विश्व कप में भारत की जीत की कहानी है, जिसमें रणवीर सिंह कपिल देव के रूप में हैं। फिल्म को इसके प्रामाणिक चित्रण, रणवीर के अभिनय, और क्रिकेट दृश्यों के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 4/5 रेटिंग दी, इसे “देशभक्ति और प्रेरणादायक” कहा। रेडिफ ने सहायक कलाकारों (जीवा, पंकज त्रिपाठी) की तारीफ की। कुछ आलोचकों ने इसकी लंबाई (2.5 घंटे) की आलोचना की, लेकिन दर्शकों ने इसके उत्साह और संगीत (“लहरा दो”) को पसंद किया। कोविड के कारण बॉक्स ऑफिस पर सीमित सफलता मिली, लेकिन ओटीटी पर लोकप्रिय रही। Rotten Tomatoes: 95%, IMDb: 7.5/10, Times of India: 4/5, Bollywood Hungama: 4/5।