Dangal: Full Movie Recap, Iconic Quotes & Hidden Facts

Photo of author
Written By moviesphilosophy

निर्देशक

“Dangal” का निर्देशन नितेश तिवारी ने किया है। वे अपनी कहानी कहने की अनूठी शैली और मजबूत पात्रों के लिए जाने जाते हैं।

मुख्य कलाकार

इस फिल्म में आमिर खान, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, साक्षी तंवर, और अपारशक्ति खुराना ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। आमिर खान ने महावीर सिंह फोगाट का दमदार किरदार निभाया है।

कहानी की पृष्ठभूमि

“Dangal” की कहानी महावीर सिंह फोगाट पर आधारित है, जो अपने बेटियों गीता और बबीता को कुश्ती में प्रशिक्षित कर उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाते हैं। यह फिल्म महिला सशक्तिकरण और दृढ़ निश्चय की प्रेरणात्मक कहानी है।

संगीत

फिल्म का संगीत प्रीतम ने दिया है, और इसके गाने जैसे “धाकड़” और “गिलहरियां” काफी लोकप्रिय हुए हैं।

रिलीज और सफलता

“Dangal” 2016 में रिलीज हुई थी और इसे आलोचकों और दर्शकों से व्यापक प्रशंसा मिली। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही और कई पुरस्कार भी जीते।

🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी में आपका स्वागत है!

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहां हम भारतीय सिनेमा की उन कहानियों को जीते हैं, जो हमें प्रेरणा देती हैं, रुलाती हैं और हंसाती हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जिसने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया, बल्कि हर भारतीय के दिल में एक खास जगह बनाई। जी हां, हम बात कर रहे हैं आमिर खान की सुपरहिट फिल्म ‘दंगल’ की। यह फिल्म सिर्फ कुश्ती की कहानी नहीं, बल्कि एक पिता की जिद, बेटियों की हिम्मत और सपनों को हकीकत में बदलने की जंग की कहानी है। तो चलिए, इस प्रेरणादायक सफर पर चलते हैं और जानते हैं कि कैसे हरियाणा के एक छोटे से गांव से निकली दो बेटियां पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन करती हैं।

परिचय: एक पिता का अधूरा सपना

‘दंगल’ की कहानी शुरू होती है हरियाणा के बलाली गांव से, जहां महावीर सिंह फोगाट (आमिर खान) एक पहलवान हैं। महावीर, जो खुद एक राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं, का सपना है कि वह भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतें। लेकिन भारतीय पहलवानी में संस्थागत समर्थन की कमी और अपने पारंपरिक पिता के दबाव के चलते उन्हें कुश्ती छोड़कर नौकरी करनी पड़ती है। कुश्ती ने उन्हें इज्जत और शोहरत तो दी, लेकिन पैसा नहीं। एक दिन ऑफिस में टीवी पर ओलंपिक देखते हुए वह भारत की कुश्ती में कमजोर स्थिति से निराश हो जाते हैं। तभी एक नया कर्मचारी (विवान भटेना) उन्हें कुश्ती के लिए चुनौती देता है, और महावीर उसे हरा देते हैं। लेकिन उनका सपना अब भी अधूरा है। वह ठान लेते हैं कि उनका बेटा उनके सपने को पूरा करेगा। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनकी पत्नी दया शोभा कौर (साक्षी तंवर) चार बेटियों को जन्म देती हैं – गीता, बबीता, रितु और संगीता। महावीर का सपना टूट जाता है, क्योंकि वह मानते हैं कि बेटियां कुश्ती नहीं लड़ सकतीं। वह अपने सारे मेडल और कुश्ती का सामान एक ट्रंक में बंद कर देते हैं।

कहानी: बेटियों में दिखी कुश्ती की चिंगारी

कई साल बीत जाते हैं। गीता (फातिमा सना शेख) और बबीता (सान्या मल्होत्रा) अब किशोरावस्था में हैं। एक दिन पड़ोस के दो लड़के उन पर भद्दी टिप्पणी करते हैं, और गीता-बबीता उन लड़कों को बुरी तरह पीट देती हैं। जब यह बात महावीर को पता चलती है, तो उनकी आंखों में एक नई उम्मीद जागती है। वह समझ जाते हैं कि उनकी बेटियों में कुश्ती का जुनून और ताकत है। वह कहते हैं, “सोना तो सोना होता है, चाहे लड़का जीते या लड़की!” यह डायलॉग फिल्म का एक अहम मोड़ है, जो दर्शाता है कि महावीर अब लिंग भेद को तोड़कर अपनी बेटियों को पहलवान बनाने की ठान चुके हैं।

महावीर अपनी पत्नी दया से एक साल का समय मांगते हैं। वह कहते हैं, “दया, बस एक साल दे दो, अगर मैं इनको पहलवान न बना सका, तो जिंदगी भर अपने सपने को भूल जाऊंगा।” दया अनमने मन से हामी भरती हैं। इसके बाद महावीर गीता और बबीता को कठोर प्रशिक्षण देना शुरू करते हैं। सुबह-सुबह कसरत, मिट्टी में कुश्ती, और सख्त डाइट – सब कुछ इतना कठिन कि बेटियां तंग आ जाती हैं। जब उनके बाल मिट्टी में खराब हो जाते हैं, तो महावीर उनके बाल कटवा देते हैं। घर के काम छुड़वाकर सिर्फ कुश्ती पर ध्यान लगाने को कहा जाता है। स्थानीय अखाड़ों में बेटियों को प्रवेश नहीं मिलता, तो महावीर अपने खेत में ही कुश्ती का पिट बनाते हैं। वह अपने भतीजे ओमकार (अपारशक्ति खुराना) को बुलाते हैं ताकि बेटियां उसके साथ अभ्यास कर सकें। लेकिन बेटियां अपने पिता की इस सख्ती से नाराज हैं। वे चुपके से मसालेदार खाना खाती हैं, अलार्म बदल देती हैं, और ठीक से अभ्यास नहीं करतीं।

भावनात्मक मोड़: पिता की लड़ाई को समझा

एक दिन गीता और बबीता अपनी एक चचेरी बहन की शादी में जाती हैं और वहां अपने पिता की सख्ती की शिकायत करती हैं। लेकिन उनकी बहन उन्हें समझाती है कि महावीर उनकी भलाई के लिए पूरी दुनिया से लड़ रहे हैं। वह कहती है, “तुम्हारे बाबूजी तुम्हें घर की चारदीवारी से निकालकर आसमान छूने का मौका दे रहे हैं, और तुम्हें उनकी सख्ती बुरी लग रही है?” यह बात बेटियों के दिल को छू जाती है। वे समझ जाती हैं कि उनके पिता का सपना सिर्फ उनका नहीं, बल्कि हर उस लड़की का है, जिसे मौका नहीं मिलता। इसके बाद गीता और बबीता पूरे मन से कुश्ती सीखने लगती हैं।

महावीर उन्हें स्थानीय दंगल में लड़ने के लिए ले जाते हैं। गांव वाले एक लड़की को लड़के के खिलाफ लड़ते देख हंसते हैं, लेकिन गीता अपनी पहली लड़ाई में भले ही हार जाए, वह सबके सामने खुद को साबित कर देती है। गांव वाले, जो पहले महावीर का मजाक उड़ाते थे, अब उनकी बेटियों की तारीफ करने लगते हैं। महावीर कहते हैं, “मेरी बेटियां किसी से कम नहीं, ये हर दंगल जीतेंगी!” गीता और बबीता एक के बाद एक प्रतियोगिता जीतने लगती हैं। गीता जूनियर और सीनियर स्टेट चैंपियनशिप जीतती है और फिर कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के लिए पंजाब के नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी में जाती है।

चरमोत्कर्ष: कॉमनवेल्थ गेम्स की जंग

अकादमी में गीता का सामना एक नई दुनिया से होता है। वहां वह फैशन, फिल्में और जंक फूड में उलझ जाती है। उसका नया कोच प्रमोद कदम (गिरीश कुलकर्णी) महावीर की तकनीकों को पुराना बताता है। गीता अपने पिता की सीख को भूलने लगती है और हर मैच हारने लगती है। एक दिन घर आकर वह अपने पिता से कुश्ती लड़ती है और उन्हें हरा देती है। यह देख महावीर टूट जाते हैं। वह सोचते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी खो दी। लेकिन बबीता गीता को समझाती है कि उनके पिता की वजह से ही वह यहां तक पहुंची है। गीता को अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपने पिता से माफी मांगती है।

कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में गीता का चयन 55 किलो वर्ग में होता है। महावीर अपनी बेटी को फोन पर गलतियां बताकर प्रशिक्षण देते हैं, लेकिन कोच प्रमोद को यह पसंद नहीं। वह गीता को तकनीक पर ध्यान देने को कहता है, जबकि महावीर उसे आक्रामक खेलने की सलाह देते हैं। फाइनल से पहले कोच की साजिश से महावीर को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है। गीता फाइनल में एक ऑस्ट्रेलियाई पहलवान से भिड़ती है, जिससे वह पहले दो बार हार चुकी है। मैच के आखिरी सेकंड में वह अपने पिता की सीख को याद करती है और एक 5-पॉइंटर मूव के साथ मैच जीत लेती है। वह भारत की पहली महिला पहलवान बनती हैं, जिसने कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। महावीर जब बाहर आते हैं, तो अपनी बेटियों को गले लगाते हैं। गीता प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहती है, “यह जीत मेरे बाबूजी की है, जिन्होंने हर लड़की के लिए लड़ाई लड़ी।”

निष्कर्ष: एक प्रेरणादायक विरासत

‘दंगल’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। यह फिल्म हमें सिखाती है कि सपने लिंग, परिस्थिति या समाज की बेड़ियों से बंधे नहीं होते। महावीर सिंह फोगाट की कहानी हर उस पिता और हर उस बेटी को प्रेरित करती है, जो अपने सपनों के लिए लड़ना चाहते हैं। फिल्म का एक और यादगार डायलॉग है, “मेरी बेटी किसी मर्द से कम नहीं, यह हर मैदान में जीतेगी!” गीता और बबीता की जीत ने न सिर्फ भारत का गौरव बढ़ाया, बल्कि दर्जनों भारतीय महिलाओं को कुश्ती में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

तो दोस्तों, ‘दंगल’ हमें यह सिखाती है कि जिद और मेहनत से कोई भी पहाड़ चढ़ा जा सकता है। अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी, तो जरूर देखें। और अगर देखी है, तो हमें बताएं कि इस कहानी ने आपको कैसे प्रेरित किया। हम फिर मिलेंगे ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ के अगले एपिसोड में। तब तक के लिए नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के?

मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है, प्यार से, मेहनत से।

आज से तेरा दंगल शुरू।

गोल्ड तो गोल्ड होता है, छोरा लावे या छोरी।

जो हारता है वही जीतता है, क्योंकि जीतने वाला कुछ नया सीखता है।

अगर आप किसी चीज को पूरे दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है।

म्हारे समाज में लोग औरतों को कम समझते हैं, पर मैं बेटियों को पहलवान बनाऊंगा।

जो लोग सफल होते हैं, उनकी सफलता के पीछे बहुत सारी असफलताएँ छुपी होती हैं।

तू खुद की नजर में गिर मत जाना, लोगों का क्या है, लोग तो कहेंगे ही।

तू लड़ेगी, तो वो भी लड़ेगी। तू हारेगी, तो वो भी हार जाएगी।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म ‘दंगल’ को न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अत्यधिक सराहा गया, लेकिन इसके निर्माण के दौरान कई दिलचस्प बातें सामने आईं। आमिर खान, जो महावीर सिंह फोगाट की भूमिका में नजर आए, ने अपने किरदार के लिए 28 किलो वजन बढ़ाया। इतना ही नहीं, उन्होंने पहले मोटे और उम्रदराज महावीर का किरदार निभाया और बाद में कड़ी मेहनत के जरिए अपने वजन को कम करके युवा महावीर के रूप में खुद को ढाला। इस प्रक्रिया में आमिर को कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और दर्शकों को एक असाधारण प्रदर्शन देखने को मिला।

फिल्म की शूटिंग के दौरान कई दिलचस्प घटनाएं भी हुईं। हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्र में शूटिंग के दौरान, स्थानीय लोगों ने आमिर खान को पहचानने में कठिनाई का सामना किया, क्योंकि उनका हुलिया पूरी तरह बदल चुका था। इसके अलावा, फिल्म की कास्टिंग भी अनोखी रही। फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा, जिन्होंने गीता और बबीता का किरदार निभाया, असल में कुश्ती की कोई पृष्ठभूमि नहीं रखती थीं। उन्हें शूटिंग से पहले कई महीनों तक कठोर कुश्ती प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा ताकि उनके किरदार वास्तविक लगें।

दंगल में कुछ छिपे हुए ईस्टर एग्स भी हैं जिन्हें ध्यान से देखने पर ही महसूस किया जा सकता है। फिल्म में महावीर फोगाट की एक प्रेरणादायक लाइन “म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?” को दर्शकों ने काफी पसंद किया। यह पंक्ति न केवल महिलाओं के सशक्तिकरण का संदेश देती है, बल्कि फिल्म के मुख्य संदेश को भी रेखांकित करती है। इसके अलावा, फिल्म में दिखाए गए कई कुश्ती मुकाबले असली मुकाबलों से प्रेरित हैं, जिन्हें वास्तविकता के बहुत करीब दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी के पीछे गहन मनोविज्ञान भी छिपा है। महावीर सिंह फोगाट का अपने बेटियों के प्रति दृढ़ निश्चय और दृढ़ता दर्शकों को यह संदेश देती है कि समाज में महिलाओं की भूमिका को पुनर्परिभाषित करना कितना महत्वपूर्ण है। फिल्म में बेटियों की सफलता के पीछे उनके पिता की अप्रतिम मेहनत और अनुशासन को भी दिखाया गया है। यह फिल्म दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि पारंपरिक सीमाओं को तोड़कर नई ऊंचाइयों को कैसे छुआ जा सकता है।

‘दंगल’ का प्रभाव और विरासत भी उल्लेखनीय है। फिल्म ने भारत में महिला कुश्ती को एक नई पहचान दी और कई युवा लड़कियों को प्रेरित किया कि वे अपने सपनों को हासिल कर सकती हैं। इसके अलावा, फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी भारतीय सिनेमा की छवि को सुधारने में मदद की। चीन में भी इस फिल्म को भारी सफलता मिली, जो भारतीय फिल्मों के लिए एक नया बाजार साबित हुआ।

अंत में, ‘दंगल’ ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता हासिल की, बल्कि भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर भी स्थापित किया। इसकी कहानी, अभिनय और निर्देशन ने इसे एक कालजयी फिल्म बना दिया। फिल्म ने सामाजिक बदलाव के लिए एक प्रेरणा का काम किया और यह दर्शाया कि सच्चे मेहनत और समर्पण से कुछ भी संभव है। ‘दंगल’ ने साबित किया कि सिनेमा का भूमिका केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का भी एक सशक्त माध्यम है।

🍿⭐ Reception & Reviews

नितेश तिवारी द्वारा निर्देशित, यह बायोपिक आमिर खान को महावीर सिंह फोगट के रूप में दिखाती है, जो अपनी बेटियों गीता और बबीता को कुश्ती में विश्व चैंपियन बनाता है। फिल्म को इसके प्रेरणादायक कथानक, शानदार प्रदर्शन, और तकनीकी उत्कृष्टता के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 4.5/5 रेटिंग दी, इसे “भारतीय सिनेमा का रत्न” कहा, जबकि रेडिफ ने इसे “प्रेरणादायक और मनोरंजक” माना। कुछ आलोचकों ने इसकी लंबाई (2.5 घंटे) की आलोचना की, लेकिन दर्शकों ने इसके संगीत (“हानिकारक बापू”) और भावनात्मक प्रभाव को पसंद किया। यह बॉक्स ऑफिस पर ऑल-टाइम ब्लॉकबस्टर थी, जिसने विश्व स्तर पर ₹2000 करोड़ से अधिक कमाए। यह कई अवॉर्ड्स जीती, जिसमें बेस्ट फिल्म (फिल्मफेयर) शामिल है। X पोस्ट्स में इसे 2016 की टॉप फिल्म माना गया। Rotten Tomatoes: 92%, IMDb: 8.3/10, Times of India: 4.5/5, Bollywood Hungama: 4.5/5।

Leave a Comment