निर्देशक
फिल्म “Once Upon a Time in Mumbaai” का निर्देशन मिलन लुथरिया ने किया है। उनके निर्देशन में यह फिल्म 1970 और 1980 के दशक के मुंबई के अंडरवर्ल्ड की कहानी को जीवंत करती है।
मुख्य कलाकार
फिल्म में अजय देवगन, इमरान हाशमी, कंगना रनौत, प्राची देसाई, और रणदीप हुड्डा ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। अजय देवगन ने सुल्तान मिर्जा का किरदार निभाया है, जबकि इमरान हाशमी शोएब खान के किरदार में नजर आते हैं।
निर्माता
इस फिल्म का निर्माण एकता कपूर और शोभा कपूर ने किया है। यह फिल्म बालाजी मोशन पिक्चर्स के बैनर तले बनाई गई है।
लेखक
फिल्म की पटकथा रजत अरोड़ा ने लिखी है, जिन्होंने कहानी को दिलचस्प और रोमांचक तरीके से प्रस्तुत किया है।
संगीत
फिल्म का संगीत प्रीतम ने तैयार किया है। इसके गाने उस दौर के संगीत की याद दिलाते हैं और फिल्म की थीम को पूरी तरह से पकड़ते हैं।
रिलीज डेट
फिल्म “Once Upon a Time in Mumbaai” 30 जुलाई 2010 को रिलीज़ हुई थी। इसे समीक्षकों और दर्शकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई थीं।
कहानी का सार
फिल्म की कहानी मुंबई के अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें सुल्तान मिर्जा की उदय और पतन की यात्रा और शोएब खान के उभरते अपराधी के रूप में उसके स्थान पर कब्जा करने की कहानी दिखाई गई है।
🎙️🎬Full Movie Recap
मूवीज़ फिलॉसफी में आपका स्वागत है!
नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहां हम भारतीय सिनेमा की गहराइयों में उतरते हैं और उन कहानियों को फिर से जीते हैं, जो हमारे दिलों को छू जाती हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जो मुंबई की अंडरवर्ल्ड की काली दुनिया को बयान करती है, जहां सत्ता, महत्वाकांक्षा और सिद्धांतों की जंग हर कदम पर दिखती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं फिल्म **’वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’** की, जो 2010 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में अजय देवगन, इमरान हाशमी, रणदीप हुडा और कंगना रनौत जैसे शानदार कलाकारों ने अपनी अदाकारी से जान डाल दी है। तो चलिए, इस कहानी को फिर से जीते हैं, इसके किरदारों की भावनाओं को समझते हैं और उन संवादों को सुनते हैं, जो इस फिल्म को अविस्मरणीय बनाते हैं।
परिचय: मुंबई की गलियों से सत्ता की कहानी
‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ हमें ले जाती है 1970 के दशक की मुंबई में, जब यह शहर सपनों का शहर तो था, लेकिन इसकी गलियों में अपराध की काली छाया भी थी। यह कहानी है सुल्तान मिर्ज़ा (अजय देवगन) की, जो एक स्मगलर है, लेकिन दिल का सोना। यह कहानी है शोएब खान (इमरान हाशमी) की, जिसकी महत्वाकांक्षा उसे हर कीमत पर मुंबई का डॉन बनाना चाहती है। और यह कहानी है डीसीपी अग्नेल विल्सन (रणदीप हुडा) की, जो इन दोनों की जंग में फंसकर खुद को दोषी मानता है 1993 के मुंबई ब्लास्ट्स के लिए। फिल्म की शुरुआत होती है 1993 से, जब डीसीपी विल्सन एक आत्महत्या की कोशिश करता है और अपने अफसरों को बताता है कि मुंबई का यह खूनी मंजर उसकी गलती का नतीजा है। वह कहता है, “अगर मैंने उस वक्त शोएब खान को रोका होता, तो आज मुंबई की सड़कों पर खून न बहता।” (संवाद 1: “मैंने उसे रोका नहीं, और आज मुंबई मेरी गलती की सजा भुगत रही है।”) इस संवाद में उसकी पीड़ा साफ झलकती है। वह हमें ले चलता है 18 साल पीछे, जब मुंबई सुल्तान मिर्ज़ा के कदमों में थी।
कहानी: सुल्तान मिर्ज़ा का उदय और सिद्धांतों की दुनिया
सुल्तान मिर्ज़ा की कहानी शुरू होती है मद्रास से, जब वह एक बाढ़ के बाद मुंबई आता है। वहां वह डॉक पर कोयला ढोने का काम करता है, लेकिन जल्द ही वह सोने और घड़ियों की स्मगलिंग में उतर जाता है। सुल्तान की खासियत यह है कि वह गरीबों की मदद करता है, उनका मसीहा बनता है। वह कहता है, “मैं अपराधी हूँ, लेकिन मेरा दिल साफ है।” (संवाद 2: “मैंने कभी ड्रग्स को हाथ नहीं लगाया, क्योंकि ये मेरे मज़हब के खिलाफ है।”) उसका यह सिद्धांत उसे मुंबई में एक गॉडफादर जैसा दर्जा दिलाता है। वह चार गैंगस्टरों के बीच इलाकों को बांट देता है और मुंबई में शांति लाता है, जिससे पुलिस के लिए उसकी गैरकानूनी गतिविधियों को रोकना मुश्किल हो जाता है।
सुल्तान की ज़िंदगी में रोमांस भी आता है, जब वह बॉलीवुड एक्ट्रेस रेहाना (कंगना रनौत) से प्यार करने लगता है। वह उसकी फिल्मों में पैसा लगाता है, लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर अग्नेल विल्सन सुल्तान को रोकने के लिए रेहाना की फिल्मों को निशाना बनाता है, जिससे रेहाना का करियर डगमगा जाता है। सुल्तान और रेहाना मिलकर विल्सन को रिश्वत लेने के जाल में फंसाते हैं, जिससे विल्सन की इमेज खराब हो जाती है।
शोएब खान: महत्वाकांक्षा की आग
दूसरी तरफ, शोएब खान की कहानी चल रही है, जो मुंबई का सबसे बड़ा डॉन बनना चाहता है। वह छोटी-मोटी चोरियां करता है, लोगों को लूटता है और अपने पिता हुसैन खान (एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर) को परेशान करता है। एक बार वह अपनी गर्लफ्रेंड मुमताज़ (प्राची देसाई) को एक हार देता है, जो उसने चोरी की थी। जब हार की असली मालकिन मुमताज़ को पहचान लेती है, तो शोएब का गुस्सा फूट पड़ता है। वह उस महिला के पति को मारता-पीटता है और अपनी ही दुकान तोड़ देता है। शोएब की यह बेकाबू महत्वाकांक्षा उसे सुल्तान के पास ले जाती है। सुल्तान उसे अपनी गैंग में शामिल कर लेता है और उसे अपराध की दुनिया के गुर सिखाता है। लेकिन शोएब का लालच उसे सुल्तान के सिद्धांतों से दूर ले जाता है। वह कहता है, “मैं सुल्तान नहीं, मैं उससे बड़ा बनूंगा।” (संवाद 3: “सुल्तान की कुर्सी पर अब मेरा नाम लिखा जाएगा।”)
चरमोत्कर्ष: सुल्तान और शोएब की टक्कर
1975 में सुल्तान अपनी सत्ता शोएब को सौंप देता है और राजनीति में उतरने का फैसला करता है। लेकिन शोएब, सुल्तान के सिद्धांतों को ठुकराकर हर गलत काम में उतर जाता है। वह जहरीली शराब बनवाता है, जिससे कई लोगों की मौत हो जाती है। वह ड्रग्स और हत्याओं के सौदों में शामिल हो जाता है। जब सुल्तान को यह पता चलता है, तो वह शोएब को सबके सामने थप्पड़ मारता है और कहता है, “तू कभी सुल्तान नहीं बन सकता, क्योंकि तेरा दिल काला है।” (संवाद 4: “सत्ता वो नहीं जो खून से खरीदी जाए, सत्ता वो है जो दिल से कमाई जाए।”) यह संवाद सुल्तान के सिद्धांतों और शोएब की क्रूरता के बीच के फर्क को दिखाता है।
शोएब को यह अपमान बर्दाश्त नहीं होता। वह सुल्तान के खिलाफ साजिश रचता है। एक रैली के दौरान, जब सुल्तान लोगों को संबोधित कर रहा होता है, शोएब उसे गोली मार देता है। सुल्तान की मौत के साथ ही मुंबई का एक युग खत्म हो जाता है। विल्सन, जो यह सब देख रहा होता है, खुद को असहाय महसूस करता है। वह सोचता है, “अगर मैंने उस दिन शोएब को रोका होता, तो सुल्तान आज ज़िंदा होता।” (संवाद 5: “मेरी चुप्पी ने मुंबई को तबाह कर दिया।”)
निष्कर्ष: शोएब का काला साम्राज्य और विल्सन की पीड़ा
वापस 1993 में, विल्सन अपनी गलती का बोझ उठाता है। वह बताता है कि शोएब अब मुंबई का बेताज बादशाह है। विदेश में रहते हुए भी उसने एक वैश्विक अपराध साम्राज्य खड़ा कर लिया है, जिसे कोई सरकार या पुलिस नहीं रोक सकती। विल्सन की यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि सत्ता और महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में कितने सपने और जिंदगियां कुचल जाती हैं।
‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ सिर्फ एक गैंगस्टर ड्रामा नहीं है, बल्कि यह सिद्धांतों और लालच की टक्कर की कहानी है। सुल्तान मिर्ज़ा हमें दिखाता है कि अपराधी होने के बावजूद इंसानियत को जिंदा रखा जा सकता है, जबकि शोएब हमें सिखाता है कि बेकाबू महत्वाकांक्षा इंसान को राक्षस बना देती है। यह फिल्म हमें मुंबई की उन गलियों में ले जाती है, जहां हर कदम पर जंग है—सत्ता की, सिद्धांतों की और अपने आप से।
तो दोस्तों, यह थी ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ की कहानी। हमें बताइए कि इस फिल्म ने आपको कैसा महसूस कराया? क्या सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार आपको प्रेरित करता है या शोएब की क्रूरता आपको डराती है? अपनी राय हमें ज़रूर बताएं। अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए, नमस्ते और देखते रहिए ‘मूवीज़ फिलॉसफी’। धन्यवाद!
🎥🔥Best Dialogues and Quotes
जब दोस्त बनाकर काम हो सकता है, तो दुश्मन क्यों बनाएं?
मेरे बारे में इतना मत सोचना, दिल में आता हूँ, समझ में नहीं।
पैसा तो सबका शौक है, लेकिन मैं उसे इबादत की तरह करता हूँ।
अच्छाई के रास्ते पर चलोगे तो फायदा जरूर होगा, लेकिन देर से होगा।
तू जो भी है, काम का है, और काम के लोग कभी फालतू नहीं होते।
बड़ा आदमी बनना है, तो इजाज़त से नहीं, धाक से बनो।
जो डर गया, वो मर गया।
कामयाबी के पीछे मत भागो, काबिल बनो, कामयाबी झक मारके पीछे आएगी।
चाहे कितना भी बड़ा आदमी क्यों न बन जाए, डर तो उसे भी लगता है।
दुआ में याद रखना, मेरा समय भी आएगा।
🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia
फिल्म “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबाई” की कहानी 1970 और 1980 के दशक के मुंबई की अंडरवर्ल्ड दुनिया पर आधारित है। इस फिल्म में अजय देवगन और इमरान हाशमी ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं, और इसने बॉलीवुड में गैंगस्टर फिल्मों के लिए एक नई दिशा तय की। इस फिल्म का निर्देशन मिलन लुथरिया ने किया था, जिन्होंने फिल्म के लिए मुंबई की प्राचीन शैली को बखूबी चित्रित किया। शूटिंग के दौरान, अजय देवगन ने अपने किरदार सुल्तान मिर्ज़ा के लिए एक खास लुक अपनाया था, जिसमें उन्होंने कई पुरानी तस्वीरों और डॉक्युमेंट्रीज़ का अध्ययन किया था। फिल्म के ज्यादातर हिस्सों की शूटिंग वास्तविक स्थानों पर की गई थी, जिससे दर्शकों को एक प्रामाणिक अनुभव मिला।
इस फिल्म के सेट पर कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। एक बार जब फिल्म की शूटिंग बंदरगाह पर चल रही थी, तो अजय देवगन और इमरान हाशमी को एक खतरनाक स्टंट खुद करना पड़ा क्योंकि स्टंटमैन उपलब्ध नहीं थे। इसके अलावा, कंगना रनौत की भूमिका के लिए पहले प्रियंका चोपड़ा और कैटरीना कैफ को संपर्क किया गया था, लेकिन अंततः यह भूमिका कंगना को मिली। फिल्म में इमरान हाशमी के किरदार शोएब खान के लिए एक विशेष प्रकार की चाल और बोली तैयार की गई थी, जो उन्होंने अपने निजी जीवन में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था, ताकि वह किरदार में गहराई से उतर सकें।
फिल्म में कई ईस्टर एग्स और छुपे हुए संदर्भ भी हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म का टाइटल “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबाई” क्लासिक हॉलीवुड फिल्मों “वन्स अपॉन अ टाइम इन अमेरिका” और “वन्स अपॉन अ टाइम इन द वेस्ट” से प्रेरित है। इसके अलावा, फिल्म में दिखाए गए कई संवाद 70 और 80 के दशक की मशहूर बॉलीवुड फिल्मों से लिए गए हैं, जो उस समय के दर्शकों के लिए एक नॉस्टैल्जिया का अनुभव प्रदान करते हैं। फिल्म का संगीत भी उसी समय के गानों से प्रेरित है, खासकर “पी लूँ” और “तुम जो आए” गाने जो आज भी लोकप्रिय हैं।
“वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबाई” की कहानी के पीछे की मनोविज्ञान भी बहुत दिलचस्प है। फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के बीच की टकराव को अच्छे और बुरे के बीच की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ सुल्तान एक नैतिकता के साथ काम करता है जबकि शोएब का किरदार महत्वाकांक्षी और आक्रामक है। यह संघर्ष दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सही है और क्या गलत, और कैसे परिस्थितियाँ किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को प्रभावित कर सकती हैं। फिल्म का यह मनोवैज्ञानिक पहलू दर्शकों को अपने जीवन में आत्ममंथन करने के लिए प्रेरित करता है।
फिल्म की रिलीज़ के बाद, इसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की बल्कि आलोचकों से भी प्रशंसा प्राप्त की। इस फिल्म ने बॉलीवुड में गैंगस्टर फिल्मों की एक नई लहर को जन्म दिया, और इसके बाद कई निर्देशकों ने इसी थीम पर फिल्में बनाईं। “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबाई” ने अजय देवगन और इमरान हाशमी दोनों के करियर को एक नई ऊंचाई पर पहुँचाया। फिल्म की सफलता ने यह साबित किया कि दर्शक वास्तविकता के करीब और प्रामाणिक कहानियों को पसंद करते हैं।
इस फिल्म का प्रभाव और विरासत आज भी बॉलीवुड में दिखाई देता है। कई फिल्म निर्माताओं ने इस फिल्म से प्रेरणा लेकर अपने प्रोजेक्ट्स में 70 और 80 के दशक की मुंबई की धारणाओं को शामिल किया। “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबाई” की सफलता के बाद, मिलन लुथरिया ने इसके सीक्वल “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा!” का निर्देशन किया, जिसने पहले फिल्म की तरह सफलता तो नहीं पाई, लेकिन इसने मूल फिल्म की विरासत को आगे बढ़ाया। इस फिल्म ने यह साबित किया कि बॉलीवुड में ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों पर आधारित कहानियों के लिए दर्शकों की एक मजबूत मांग है।
🍿⭐ Reception & Reviews
मिलन लुथरिया निर्देशित यह गैंगस्टर ड्रामा अजय देवगन और इमरान हाशमी के दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है। IMDb रेटिंग 7.4/10। संवाद, संगीत और 70–80 के दशक की मुंबई की पृष्ठभूमि को खूब सराहा गया।