Dasavathaaram (2008): Full Movie Recap, Iconic Dialogues, Review & Hidden Facts

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Written By moviesphilosophy

निर्देशक:

“दसावतारम” का निर्देशन के. एस. रविकुमार ने किया है, जो तमिल सिनेमा के एक प्रसिद्ध निर्देशक हैं।

मुख्य अभिनेता:

इस फिल्म में कमल हासन ने दस विभिन्न भूमिकाएँ निभाई हैं, जो इसे एक अनोखा और चुनौतीपूर्ण कार्य बनाता है।

मुख्य अभिनेत्री:

फिल्म में मुख्य अभिनेत्री के रूप में असिन थोट्टूमकल नजर आती हैं, जिन्होंने इस कहानी में दोहरी भूमिका निभाई है।

अन्य प्रमुख कलाकार:

जयराम, मल्लिका शेरावत और नपोलियन भी फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में शामिल हैं।

संगीत:

फिल्म का संगीत हिमेश रेशमिया ने दिया है, जिन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए तमिल में पहली बार संगीत दिया।

कहानी की झलक:

“दसावतारम” एक विज्ञान-कथा पर आधारित थ्रिलर है, जिसमें समय यात्रा और इतिहास के साथ जुड़ी घटनाओं को दर्शाया गया है।

विशेषताएँ:

इस फिल्म की विशेषता कमल हासन द्वारा निभाए गए दस विभिन्न किरदार हैं, जो अपनी वर्सेटैलिटी और अभिनय कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
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🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी पॉडकास्ट में आपका स्वागत है!

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहाँ हम भारतीय सिनेमा की गहराई में उतरते हैं और कहानियों को उनके भावनात्मक और दार्शनिक पहलुओं के साथ आपके सामने पेश करते हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जो इतिहास और आधुनिकता का अद्भुत संगम है। यह कहानी हमें ले जाती है 12वीं सदी के चिदंबरम से लेकर 21वीं सदी के वैज्ञानिक षड्यंत्रों तक। फिल्म का नाम है – एक ऐसी कहानी जो भक्ति, विश्वासघात, और मानवता की लड़ाई को बयान करती है। तो चलिए, शुरू करते हैं इस रोमांचक रिकैप को!

परिचय: दो युगों की कहानी

यह फिल्म दो अलग-अलग समयावधियों में फैली एक ऐसी कहानी है, जो भक्ति और विज्ञान, विश्वास और संदेह के बीच की जंग को दर्शाती है। एक तरफ 12वीं सदी का चिदंबरम, जहाँ क्रूर सम्राट कुलोथुंगा चोल द्वितीय, शिव का भक्त होने के नाते विष्णु भक्तों पर अत्याचार करता है। दूसरी तरफ, 2004 का आधुनिक युग, जहाँ बायो-साइंटिस्ट गोविंदराजन रामास्वामी उर्फ गोविंद (Govind) एक खतरनाक वायरस पर काम कर रहा है, जो मानवता के लिए वरदान और अभिशाप दोनों बन सकता है। दोनों कहानियों को जोड़ता है चिदंबरम का वह पवित्र मंदिर और विष्णु की मूर्ति, जो सदियों से रहस्यों को संजोए हुए है।

कहानी का प्रारंभ: 12वीं सदी का अत्याचार

कहानी शुरू होती है 12वीं सदी के चिदंबरम से, जहाँ सम्राट कुलोथुंगा चोल विष्णु भक्तों को कुचलने के लिए प्रतिबद्ध है। उसका बचपन का दोस्त, पुजारी रंगराजन नंबी, विष्णु का कट्टर भक्त है। जब सम्राट विष्णु की विशाल मूर्ति को तोड़ने का आदेश देता है, तो नंबी इसका विरोध करता है। क्रोधित सम्राट उसे शिव की आज्ञा मानने का मौका देता है, लेकिन नंबी मना कर देता है। इसके बाद उसे क्रूर यातनाओं से गुजरना पड़ता है – हुक, चेन, पत्थरबाजी, और कोड़े। अंत में, सम्राट उसे विष्णु की मूर्ति से बांधकर समुद्र के बीच में डुबो देता है। इस दृश्य में नंबी की भक्ति की गहराई को दर्शाते हुए वह कहता है, **”हे विष्णु, मेरी रक्षा करो, मैं तुम्हारा ही हूँ, मेरा जीवन तुम्हारे चरणों में अर्पित है!”** यह डायलॉग भक्ति और बलिदान की भावना को जीवंत करता है।

आधुनिक युग: गोविंद और वायरस का संकट

कट टू 2004, जहाँ हम मिलते हैं गोविंद से, एक बायो-साइंटिस्ट जो अमेरिकी सरकार के लिए एक घातक वायरस बायोवेपन बना रहा है। लेकिन एक हादसे में लैब का बंदर हनु वायरस को चॉकलेट समझकर खा लेता है, और वायरस फैलने का खतरा मंडराने लगता है। गोविंद तुरंत कमरे को सील कर नमक के घोल से वायरस को नष्ट कर देता है, लेकिन उसका दिल टूट जाता है। वह तय करता है कि वह इस वायरस को बेचेगा नहीं, चाहे उसका बॉस डॉ. सेठु कितना भी दबाव डाले। सेठु की विश्वासघात की साजिश को जानकर गोविंद वायरस की शीशी चुरा लेता है और भाग निकलता है। इस दौरान वह अपने दोस्त सुरेश के घर जाता है, लेकिन वहाँ भी उसे धोखा मिलता है। सुरेश को सेठु ने पैसे का लालच देकर गोविंद को फंसाने के लिए कहा है। गोविंद क्रोध में कहता है, **”दोस्ती का मतलब क्या, जब पैसा ही सब कुछ बन जाए? तूने मुझे बेच दिया, सुरेश!”** यह डायलॉग विश्वासघात की पीड़ा को बयान करता है।

चरमोत्कर्ष की ओर: चिदंबरम का रहस्य

गोविंद की भागदौड़ उसे भारत ले आती है, जहाँ वायरस की शीशी गलती से चिदंबरम की एक बुजुर्ग महिला कृष्णावेनी के पास पहुँच जाती है। कृष्णावेनी अपने मृत बेटे अरवुडन को जीवित मानती है और शीशी को विष्णु की मूर्ति में छुपा देती है। गोविंद वहाँ पहुँचता है, लेकिन उसे शीशी नहीं मिलती। इस बीच, मर्सिनरी क्रिश्चियन फ्लेचर और उसकी साथी जैस्मिन, जो आतंकवादी संगठन के लिए काम करते हैं, गोविंद का पीछा करते हैं। चिदंबरम के मंदिर में एक भयानक हादसा होता है, जब फ्लेचर एक हाथी पर गोली चला देता है और अफरा-तफरी मच जाती है। गोविंद और कृष्णावेनी की पोती अंडाल मूर्ति को लेकर भागते हैं। इस दौरान अंडाल, जो गहरी आस्तिक है, गोविंद से कहती है, **”यह मूर्ति भगवान की है, इसे अपमान मत करो, गोविंद! भगवान सब देख रहे हैं!”** यह डायलॉग आस्था और विज्ञान के टकराव को दर्शाता है।

गोविंद और अंडाल का सफर उन्हें चोल साम्राज्य के खंडहरों तक ले जाता है, जहाँ नंबी की पत्नी ने अपने पति की मृत्यु के बाद आत्महत्या की थी। यहाँ उनकी मुलाकात खालाफुला नामक एक मुस्लिम परिवार से होती है, जो उनकी मदद करता है। लेकिन फ्लेचर और उसका साथी कुमार उनका पीछा नहीं छोड़ते। एक तनावपूर्ण दृश्य में गोविंद कहता है, **”जब तक साँस है, मैं इस वायरस को गलत हाथों में नहीं जाने दूँगा, चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए!”** यह डायलॉग उसकी दृढ़ता और जिम्मेदारी को दर्शाता है।

चरमोत्कर्ष: सुनामी और मानवता की जीत

कहानी अपने चरम पर पहुँचती है, जब गोविंद और अंडाल समुद्र तट पर पहुँचते हैं। फ्लेचर उन्हें पकड़ लेता है और वायरस को निगल लेता है, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। तभी एक विशाल सुनामी आती है, जो पूरे शहर को तबाह कर देती है, लेकिन साथ ही वायरस को भी नष्ट कर देती है। इस तबाही में कई लोग अपनी जान गँवाते हैं, लेकिन यह प्रकृति का तरीका है मानवता को बचाने का। अंडाल इसे भगवान का चमत्कार मानती है, जबकि गोविंद अभी भी संदेह में है। वह कहता है, **”शायद कोई ऊपरी ताकत है, जो हमें देख रही है, लेकिन मैं सिर्फ कर्म में विश्वास करता हूँ।”**

निष्कर्ष: आस्था और विज्ञान का मेल

सुनामी के बाद, गोविंद और अंडाल की जिंदगी बदल जाती है। वे शादी कर लेते हैं और वर्षों बाद एक भीड़ के सामने अपनी कहानी सुनाते हैं, यह सवाल उठाते हुए कि क्या वाकई कोई सर्वशक्तिमान है जो हमारे जीवन को निर्देशित करता है? फिल्म का अंत एक उत्सव के साथ होता है, जहाँ सभी मुख्य किरदार एक साथ जश्न मना रहे हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि आस्था और विज्ञान, दोनों का अपना महत्व है, और शायद दोनों ही सत्य के अलग-अलग पहलू हैं।

यह थी हमारी आज की फिल्म की कहानी, जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी जिंदगी में कोई बड़ा उद्देश्य है, या यह सब संयोग मात्र है। ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए, नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

भगवान पर सवाल उठाने का हक सबको है।

कभी-कभी इतिहास को बदलने के लिए एक व्यक्ति ही काफी होता है।

विज्ञान और धर्म का संघर्ष सदियों से चलता आ रहा है।

हर इंसान के भीतर एक देवता और एक राक्षस होता है।

जिंदगी की असली खूबसूरती उसकी अनिश्चितता में है।

हम सब एक ही सृष्टि का हिस्सा हैं, फिर भी कितने अलग-अलग हैं।

आस्था और तर्क का तालमेल ही सच्चा ज्ञान है।

प्रकृति के नियम इंसान के बनाए नियमों से ऊपर होते हैं।

हमारे कर्म ही हमारी पहचान बनाते हैं।

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है, यहां तक कि हमारी सोच भी।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

दसवथारम (2008) भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अद्वितीय फिल्म है, जिसमें कमल हासन ने दस विभिन्न भूमिकाओं में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी, जिसमें विशेष प्रभाव और मेकअप तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था। कमल हासन ने न केवल अभिनय किया बल्कि इस फिल्म की कहानी भी लिखी, जिसे बनाने में लगभग सात साल लगे। फिल्म की शूटिंग के दौरान, कमल हासन को हर भूमिका के लिए विशेष मेकअप की आवश्यकता होती थी, जिसमें घंटों लग जाते थे। यह फिल्म एक गहन शोध और समर्पण का परिणाम थी, जो इसे भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर बनाती है।

फिल्म के पीछे के दृश्यों की बात करें तो, दसवथारम के मेकअप के लिए हॉलीवुड के प्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट माइकल वेस्टमोर को बुलाया गया था। माइकल वेस्टमोर ने स्टार ट्रेक सीरीज के लिए भी काम किया है, और उन्होंने कमल हासन के चेहरे को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेट पर काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि कैसे कमल हासन अपने हर किरदार के लिए पूरी तरह से समर्पित रहते थे, चाहे वो बुजुर्ग महिला का किरदार हो या फिर अमेरिकी वैज्ञानिक का। इन भूमिकाओं के लिए उन्होंने न केवल मेकअप बल्कि आवाज और बॉडी लैंग्वेज पर भी काम किया।

दसवथारम में कई छिपे हुए ईस्टर एग्स हैं, जिन्हें दर्शकों ने पहली बार में नहीं पहचाना। फिल्म के कई दृश्यों में कमल हासन के पुराने फिल्मों के संदर्भ या फिर उनकी निजी जीवन से जुड़ी बातें शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर, फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य हैं, जो उनके व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं या उनके पसंदीदा विषयों को दर्शाते हैं। ये ईस्टर एग्स दर्शकों को फिल्म के गहरे अर्थ और इसके पात्रों की जटिलता को समझने में मदद करते हैं।

फिल्म के मनोविज्ञान पर बात करें तो, दसवथारम में दर्शन और विज्ञान का गहरा मिश्रण है। इसके पात्र और उनकी कहानियां यह दर्शाती हैं कि कैसे समय और घटनाएं मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। फिल्म का मुख्य विषय ‘अराजकता के सिद्धांत’ पर आधारित है, जो यह दर्शाता है कि कैसे एक छोटी सी घटना समय के साथ बड़ी आपदाओं का कारण बन सकती है। यह विषय दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि उनके जीवन में छोटी-छोटी घटनाओं का भी कितना बड़ा प्रभाव हो सकता है।

दसवथारम का प्रभाव और विरासत भी काफी गहरी है। इस फिल्म ने विशेष प्रभाव और मेकअप के क्षेत्र में भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी। इसके अलावा, कमल हासन की अभिनय क्षमता और उनकी फिल्म निर्माण की दृष्टि ने भारतीय फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इस फिल्म के बाद, भारतीय सिनेमा में विशेष प्रभाव और मेकअप के क्षेत्र में कई प्रयोग हुए, जिसने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

अंत में, दसवथारम ने भारतीय सिनेमा के दर्शकों और निर्माताओं के लिए नए रास्ते खोले। इस फिल्म ने यह साबित कर दिया कि भारतीय फिल्में भी तकनीकी दृष्टि से समृद्ध हो सकती हैं और जटिल कथानक के माध्यम से गहरी कहानियां प्रस्तुत कर सकती हैं। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के लिए एक प्रेरणा स्रोत रही है, जिसने नए फिल्म निर्माताओं को चुनौतीपूर्ण विषयों पर काम करने के लिए प्रेरित किया। दसवथारम आज भी एक ऐसी फिल्म है, जिसे बार-बार देखने पर भी नए पहलुओं का पता चलता है।

🍿⭐ Reception & Reviews

के.एस. रविकुमार द्वारा निर्देशित, यह तमिल फिल्म (हिंदी डब) कमल हासन को 10 अलग-अलग भूमिकाओं में दिखाती है, जो एक जैव-हथियार की साजिश से जुड़ी है। फिल्म को कमल के बहुमुखी अभिनय, VFX, और महत्वाकांक्षी स्क्रिप्ट के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 3.5/5 रेटिंग दी, इसे “कमल की जीत” कहा। रेडिफ ने इसके मेकअप और प्रदर्शन की तारीफ की। कुछ आलोचकों ने कहानी की जटिलता और असंगति की आलोचना की, लेकिन दर्शकों ने कमल के 10 अवतारों को पसंद किया। हिंदी डब संस्करण लोकप्रिय रहा। Rotten Tomatoes: 67%, IMDb: 7.3/10, Times of India: 3.5/5।

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