Mission Mangal: Full Movie Recap, Iconic Dialogues, Review & Hidden Facts

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Written By moviesphilosophy

निर्देशक

फिल्म “मिशन मंगल” का निर्देशन जगन शक्ति ने किया है, जो अपनी पहली फिल्म के साथ ही एक असाधारण कहानी को प्रस्तुत करने के लिए प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं।

मुख्य कलाकार

इस फिल्म में अक्षय कुमार, विद्या बालन, तापसी पन्नू, सोनाक्षी सिन्हा, कीर्ति कुल्हारी, शरमन जोशी, और निथ्या मेनन ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं, जो उनके शानदार प्रदर्शन के लिए सराही गई हैं।

निर्माता

“मिशन मंगल” का निर्माण फॉक्स स्टार स्टूडियोज और केप ऑफ गुड फिल्म्स के बैनर तले किया गया है, जो उच्च गुणवत्ता वाली फिल्मों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।

कहानी का आधार

यह फिल्म भारत के मंगलयान मिशन पर आधारित है, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक सच्ची और प्रेरणादायक कहानी को दर्शाती है।

रिलीज़ तिथि

“मिशन मंगल” 15 अगस्त 2019 को रिलीज़ हुई थी, जो भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दर्शकों को एक प्रेरक कहानी पेश करती है।

🎙️🎬Full Movie Recap

Movies Philosophy में आपका स्वागत है!

नमस्ते, मेरे प्यारे श्रोताओं! ‘Movies Philosophy’ के इस नए एपिसोड में आपका हार्दिक स्वागत है। यहाँ हम फिल्मों की गहराई में उतरते हैं, उनकी कहानियों को जीते हैं और उनसे मिलने वाले जीवन के सबक को समझते हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जो न सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धियों की कहानी है, बल्कि सपनों, संघर्षों और देशभक्ति की भावना को भी खूबसूरती से बयान करती है। हम बात कर रहे हैं फिल्म **”मिशन मंगल”** की, जो भारत की मंगलयान परियोजना (Mars Orbiter Mission – MOM) पर आधारित है। इस फिल्म में अक्षय कुमार और विद्या बालन जैसे सितारों ने मुख्य भूमिका निभाई है, और यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे असंभव को संभव बनाया जा सकता है। तो चलिए, इस प्रेरणादायक कहानी में डूबते हैं और देखते हैं कि कैसे एक टीम ने हिम्मत, बुद्धिमत्ता और एकजुटता से इतिहास रच दिया।

परिचय: एक असंभव मिशन की शुरुआत

“मिशन मंगल” भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की मंगलयान परियोजना की कहानी को बड़े पर्दे पर जीवंत करती है। यह फिल्म हमें 2010 की उस घटना से शुरू होती है, जब GSLV-F06 का लॉन्च असफल हो जाता है। इस असफलता का दोष प्रोजेक्ट डायरेक्टर तारा शिंदे (विद्या बालन) पर आता है, लेकिन उनके साथी वैज्ञानिक राकेश धवन (अक्षय कुमार) इस दोष को अपने सिर ले लेते हैं। नतीजा? राकेश को सजा के तौर पर मंगलयान मिशन पर भेज दिया जाता है, जिसे उनके सहकर्मी एक असंभव मिशन मानते हैं। कारण साफ है – मंगल तक पहुँचने का सपना, वो भी इतने कम बजट में, किसी सपने से कम नहीं लगता। दूसरी तरफ, GSLV मिशन की जिम्मेदारी रूपर्ट देसाई (दलीप ताहिल) को दी जाती है, जो एक पूर्व NASA वैज्ञानिक हैं और भारतीय मूल के हैं। रूपर्ट का मानना है कि ISRO को NASA से तकनीक उधार लेनी चाहिए, लेकिन राकेश ‘मेक इन इंडिया’ के सिद्धांत पर अडिग हैं।

यह कहानी सिर्फ मंगल मिशन की नहीं, बल्कि उन लोगों की भी है, जो अपने निजी जीवन के संघर्षों के बीच इस मिशन को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक करते हैं। तारा शिंदे, जो घर और करियर के बीच संतुलन बनाने की जद्दोजहद में हैं, से लेकर राकेश धवन, जो हर हाल में इस मिशन को भारत की शान बनाना चाहते हैं – यह फिल्म हमें दिखाती है कि सपने कितने भी बड़े क्यों न हों, मेहनत और लगन से उन्हें हकीकत में बदला जा सकता है।

कहानी: संघर्ष, सपने और एकजुटता

फिल्म की शुरुआत में हम देखते हैं कि मंगलयान मिशन को PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) के जरिए लॉन्च करना असंभव सा लगता है, क्योंकि उपलब्ध तकनीक में सिर्फ 1500 किलो का पेलोड उठाने की क्षमता है, जबकि मंगल तक पहुँचने के लिए लगभग 5.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी है। GSLV, जो 2300 किलो का पेलोड उठा सकता था, वो हाल की असफलताओं के कारण जोखिम में है। राकेश और तारा के सामने एक पहाड़ जैसी चुनौती है। इस बीच तारा को घर पर भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है – उनके पति सुनील (संजय कपूर) और बेटे दिलीप (रोहन जोशी) के बीच लगातार तनाव रहता है। दिलीप को संगीतकार ए.आर. रहमान और इस्लाम में रुचि है, साथ ही वह मंगल मिशन को लेकर भी उत्साहित है।

एक दिन, घर पर पूरियाँ तलते वक्त तारा को एक अनोखा आइडिया आता है। उनकी नौकरानी कहती है कि गैस खत्म होने वाली है, तो तारा कहती हैं, “तेल गरम कर लो, फिर गैस बंद कर दो। ठंडा हो तो फिर चालू कर लेना।” यह छोटी सी बात तारा के दिमाग में एक चिंगारी बन जाती है। वह सोचती हैं कि क्यों न PSLV के साथ ऐसा ही किया जाए – ईंधन को चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल कर मंगल तक पहुँचा जाए। वह इस आइडिया को राकेश के साथ साझा करती हैं, जो तुरंत मान जाते हैं। लेकिन उनकी टीम इस पर हँसती है, फिर भी धीरे-धीरे सभी को यकीन हो जाता है। इस बीच राकेश एक प्रेरणादायक बात कहते हैं, “सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो आपको सोने न दें।”

रूपर्ट तारा और राकेश को अपनी सबसे अच्छी टीम नहीं देते, बल्कि जूनियर वैज्ञानिकों की एक टीम देते हैं, जिन्हें अनुभवहीन माना जाता है। इस टीम में हैं – एका गांधी (सोनाक्षी सिन्हा), जो भारत से नफरत करती है और NASA में जाने का सपना देखती है; नेहा सिद्दीकी (कीर्ति कुल्हारी), जो अपने अंतर-सामुदायिक पृष्ठभूमि के कारण तिरस्कार झेल रही है; कृतिका अग्रवाल (तापसी पन्नू), जो अपने घायल पति रिषी (मोहम्मद जीशान अयूब) की देखभाल में व्यस्त है; वर्षा पिल्लई (नित्या मेनन), जो सास के तानों से परेशान है; परमेश्वर (शरमन जोशी), जो ज्योतिष में विश्वास करता है और एका से प्यार करता है; और अनंत अय्यंगर (एच.जी. दत्तात्रेय), जो अपनी पत्नी के साथ तिरुमला की तीर्थयात्रा पूरी करना चाहते हैं।

चरमोत्कर्ष: चुनौतियाँ और जीत की ओर कदम

जब चंद्रयान-2 की घोषणा होती है, तो मंगल मिशन का बजट 50% कट कर 400 करोड़ रह जाता है। तारा और राकेश अपनी टीम को प्रेरित करने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। एक दिन तारा अपनी टीम को कहती हैं, “हमें मंगल पर नहीं पहुँचना, हमें अपने सपनों पर पहुँचना है।” यह बात टीम के दिल को छू जाती है। सभी अपने बचपन की वैज्ञानिक जिज्ञासा को याद करते हैं और जी-जान से काम में जुट जाते हैं। कृतिका अपने पति रिषी के कहने पर लौट आती है, जो कहते हैं, “तुम्हारी ड्यूटी भी देश के लिए है, जैसे मेरी थी।”

टीम सैटेलाइट का वजन कम करने के लिए प्लास्टिक-एल्यूमिनियम कम्पोजिट का इस्तेमाल करती है। एका 850 किलो ईंधन के साथ मंगल तक पहुँचने का रास्ता खोज लेती है और NASA की अर्जी वापस ले लेती है। तारा सुझाव देती हैं कि चंद्रयान-2 के उपकरण उधार लिए जाएँ, ताकि लागत बचे। आखिरकार, 5 नवंबर 2013 को मंगलयान को PSLV के जरिए लॉन्च किया जाता है और यह पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो जाता है। राकेश गर्व से कहते हैं, “यह सिर्फ एक मिशन नहीं, यह भारत की शान है।”

लेकिन मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। छठे ऑर्बिट-रेजिंग मैन्यूवर के दौरान जेट्स फेल हो जाते हैं, जिससे मिशन 6 दिन पीछे हो जाता है। रूपर्ट टीम का मजाक उड़ाता है, लेकिन तारा कहती हैं, “हौसला रखो, मंगल हमारा इंतजार कर रहा है।” कुछ महीनों बाद, मंगल की ओर जाते वक्त सैटेलाइट को सौर विकिरण की लहर से नुकसान पहुँचता है, जिससे संचार प्रणाली प्रभावित होती है। लेकिन जब संचार बहाल होता है, तो पता चलता है कि सौर विकिरण ने सैटेलाइट की गति बढ़ा दी और 6 दिन की देरी को कवर कर लिया। 298 दिन की यात्रा के बाद, 24 सितंबर 2014 को मंगलयान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो जाता है। भारत पहला देश बन जाता है, जिसने पहली कोशिश में ही यह कारनामा कर दिखाया।

निष्कर्ष: सपनों की उड़ान

“मिशन मंगल” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है। यह हमें सिखाती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों, तो कुछ भी असंभव नहीं। तारा और राकेश की कहानी हमें दिखाती है कि निजी जीवन के संघर्षों के बीच भी बड़े सपने देखे जा सकते हैं। फिल्म का एक डायलॉग, “असफलता एक कदम है, हार नहीं,” हमें यह सिखाता है कि हर असफलता हमें सफलता की ओर ले जाती है।

तो, मेरे प्यारे श्रोताओं, ‘Movies Philosophy’ के इस एपिसोड को यहीं समाप्त करते हैं। अगर आपको यह रिकैप पसंद आया हो, तो हमें जरूर बताएँ। अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे एक नई कहानी, एक नई प्रेरणा के साथ। तब तक, सपने देखते रहें, क्योंकि सपने ही हमें उड़ान देते हैं। नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

इसरो का मतलब है देश के लिए कुछ कर दिखाना।

हमारे लिए स्काई नहीं, स्पेस ही है लिमिट।

सपने वो नहीं होते जो सोते वक्त आते हैं, सपने वो होते हैं जो सोने नहीं देते।

सपने देखने वाले ही सपने सच करते हैं।

मिशन मंगल केवल एक मिशन नहीं, एक इरादा है।

हमेशा प्लान A पर ही भरोसा रखो, क्योंकि प्लान B का कोई भरोसा नहीं।

अगर हममें जिद है, तो नाकामयाबी की कोई जंजीर हमें बांध नहीं सकती।

अगर हम हार मान लेते, तो आज हम यहां नहीं होते।

असली जज्बा वही है जो हारने का डर हटा दे।

बिना दिक्कतों के कोई काम बड़ा नहीं बनता।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

‘मिशन मंगल’ भारतीय सिनेमा की एक अनोखी फिल्म है, जो इसरो के मंगलयान मिशन की सच्ची कहानी पर आधारित है। इस फिल्म के निर्माण के पीछे कई रोचक तथ्य हैं, जिनमें से एक यह है कि यह फिल्म अक्षय कुमार के लिए एक व्यक्तिगत परियोजना थी। उन्होंने इस फिल्म को महिला वैज्ञानिकों को समर्पित किया, जिनके योगदान को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। अक्षय ने इस फिल्म के लिए अपनी फीस भी कम कर दी ताकि बजट वैज्ञानिक रूप से सटीक सेटों और प्रॉप्स पर खर्च किया जा सके। इसके अलावा, फिल्म की शूटिंग सिर्फ 32 दिनों में पूरी कर ली गई, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड था।

फिल्म के सेट पर कई दिलचस्प घटनाएं भी हुईं। विद्या बालन, जो फिल्म में तारा शिंदे का किरदार निभाती हैं, ने खुद को वैज्ञानिकों के जीवन में डुबोने के लिए इसरो के कार्यों की गहराई से अध्ययन किया। इसके साथ ही, फिल्म की पूरी टीम असली इसरो के वैज्ञानिकों से मिलने गई थी ताकि वे उनकी कार्यशैली और जीवनशैली को समझ सकें। इस दौरान कलाकारों ने इसरो के कई महत्वपूर्ण उपकरणों को भी देखा और उनके उपयोग की बारीकियों को समझा। यह तैयारी फिल्म के यथार्थवाद को बढ़ाने में सहायक रही।

फिल्म में कई ईस्टर एग्स भी छुपे हैं जो दर्शकों की नजर से अक्सर बच जाते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म में अक्षय कुमार का किरदार राकेश धवन हमेशा चाय पीते हुए दिखाई देता है, जो भारतीय कार्यस्थल की एक आम संस्कृति को दर्शाता है। इसके अलावा, फिल्म के कई संवाद सीधे वास्तविक वैज्ञानिकों से प्रेरित हैं। एक दृश्य में, जब टीम को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो वे एक-दूसरे को प्रेरित करते हैं, जो इसरो की असली टीम की वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित है।

फिल्म की मनोविज्ञान की बात करें तो, ‘मिशन मंगल’ ने दर्शकों को यह दिखाया कि असफलता के डर से कैसे पार पाया जा सकता है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक टीम के रूप में काम करके और समस्याओं का रचनात्मक समाधान ढूंढकर असंभव को संभव बनाया जा सकता है। यह फिल्म न सिर्फ विज्ञान के महत्व को रेखांकित करती है बल्कि टीमवर्क, समर्पण और धैर्य की भी सीख देती है। फिल्म के पात्रों की व्यक्तिगत कहानियों ने दर्शकों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बनाया, जिससे वे फिल्म के अंत तक जुड़े रहे।

‘मिशन मंगल’ का प्रभाव और विरासत भी उल्लेखनीय है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व को प्रमुखता से प्रस्तुत करती है। इस फिल्म ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता प्राप्त की, बल्कि इसने विज्ञान और शोध में युवाओं की रुचि भी बढ़ाई। फिल्म ने यह दिखाया कि कैसे सही दृष्टिकोण और समर्पण से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। इस फिल्म की सफलता ने अन्य फिल्म निर्माताओं को भी प्रेरित किया कि वे वैज्ञानिक विषयों पर फिल्में बनाएं।

अंततः, ‘मिशन मंगल’ एक प्रेरणादायक फिल्म के रूप में स्थापित हुई, जिसने विज्ञान को एक रोमांचक और प्रेरक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया। इसने महिला वैज्ञानिकों के योगदान को उजागर किया और विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक नई राह खोली। फिल्म की सफलता ने यह साबित कर दिया कि भारतीय दर्शक अच्छी और प्रेरणादायक कहानियों को सराहते हैं, चाहे वे किसी भी विषय पर आधारित हों। ‘मिशन मंगल’ ने न केवल भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय जोड़ा, बल्कि इसने विज्ञान प्रेमियों के दिलों में भी एक विशेष स्थान बनाया।

🍿⭐ Reception & Reviews

जगन शक्ति द्वारा निर्देशित, यह साइंस ड्रामा अक्षय कुमार और विद्या बालन के साथ इसरो के मंगलयान मिशन की कहानी है। फिल्म को इसके प्रेरणादायक कथानक, विद्या के प्रदर्शन, और वैज्ञानिक उत्साह के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 3.5/5 रेटिंग दी, इसे “प्रेरणादायक लेकिन सरल” कहा। रेडिफ ने सहायक कलाकारों (तापसी पन्नू, सोनाक्षी सिन्हा) की तारीफ की। कुछ आलोचकों ने तथ्यात्मक अशुद्धियों और नाटकीय अतिशयोक्ति की आलोचना की, लेकिन दर्शकों ने इसके संदेश और देशभक्ति को पसंद किया। यह बॉक्स ऑफिस पर हिट थी (₹290 करोड़+)। X पोस्ट्स में इसे इसरो की उपलब्धियों का उत्सव माना गया। Rotten Tomatoes: 60%, IMDb: 6.5/10, Times of India: 3.5/5, Bollywood Hungama: 3.5/5।

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