Peepli Live: Full Movie Recap, Iconic Dialogues, Review & Hidden Facts

Photo of author
Written By moviesphilosophy

निर्देशक:

अनुषा रिज़वी

मुख्य कलाकार:

ओंकार दास मानिकपुरी, रघुबीर यादव, मलाइका शेनॉय, शालिनी वत्स

निर्माता:

आमिर खान, किरण राव

संगीत:

राम संपत

रिलीज़ वर्ष:

2010

भाषा:

हिन्दी

शैली:

ड्रामा, व्यंग्य

🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी पॉडकास्ट में आपका स्वागत है!

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहाँ हम भारतीय सिनेमा की गहराइयों में उतरते हैं और उन कहानियों को आपके सामने लाते हैं जो दिल को छूती हैं, दिमाग को झकझोरती हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी फिल्म की, जो हास्य और व्यंग्य के जरिए समाज की कड़वी सच्चाई को सामने लाती है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 2010 में रिलीज़ हुई फिल्म **”पीपली लाइव”** की, जिसे अनुषा रिज़वी ने डायरेक्ट किया है। यह फिल्म गरीबी, राजनीति, और मीडिया के खेल को इतने करीब से दिखाती है कि आप हँसते-हँसते भी सोच में पड़ जाएँगे। तो चलिए, इस कहानी की गहराई में उतरते हैं और देखते हैं कि नत्था की जिंदगी में क्या-क्या तूफान आए और कैसे उसकी कहानी एक राष्ट्रीय सनसनी बन गई।

परिचय: पीपली गाँव की कहानी, नत्था की ज़िंदगी

“पीपली लाइव” मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव पीपली की कहानी है, जहाँ गरीबी और लाचारी हर घर की सच्चाई है। फिल्म का मुख्य किरदार है नत्था दास माणिकपुरी (ओमकार दास माणिकपुरी), एक गरीब किसान, जो अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने में भी नाकाम है। उसके परिवार में उसकी पत्नी धनिया (शालिनी वत्सा), तीन छोटे बच्चे, उसकी बीमार माँ अम्मा (सुरेखा सिकरी), जो ज्यादातर समय लेटी रहती है और नत्था-धनिया को ताने मारती रहती है, और उसका बड़ा भाई बुद्धिया (रघुबीर यादव) शामिल हैं। नत्था और बुद्धिया खेती करने का दिखावा करते हैं, लेकिन असल में जो थोड़े-बहुत पैसे बचते हैं, वो शराब खरीदने में खर्च कर देते हैं। नतीजा यह कि परिवार भूखा रहता है, और ऊपर से बैंक का कर्ज़ चुकाने का दबाव है। अगर कर्ज़ नहीं चुकाया गया, तो उनकी ज़मीन और घर छिन जाएगा।

इस बीच मध्य प्रदेश में उपचुनाव का ऐलान होता है। सत्तारूढ़ सम्मान पार्टी और मुख्यमंत्री राम बाबू यादव की सरकार गरीबी और किसानों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने के लिए आलोचना झेल रही है। विपक्षी अपना दल पार्टी को लगता है कि यह उनके लिए सत्ता हासिल करने का सुनहरा मौका है। नत्था और बुद्धिया जब जिला प्रमुख भाई ठाकुर (सीताराम पंचाल) से मदद माँगने जाते हैं, तो ठाकुर साफ मना कर देता है। बल्कि वह नत्था को एक अजीब सुझाव देता है, “अगर तू आत्महत्या कर ले, तो सरकार तेरे परिवार को मुआवजा देगी। कर्ज़ भी माफ हो जाएगा।” यह सुनकर नत्था और बुद्धिया सकते में आ जाते हैं, लेकिन गरीबी की मार ने उन्हें इतना मजबूर कर दिया है कि वे इस खतरनाक रास्ते पर सोचने लगते हैं।

कहानी का विस्तार: आत्महत्या की खबर और मीडिया का तमाशा

नत्था और बुद्धिया जब एक स्थानीय चाय की दुकान पर इस बात पर चर्चा कर रहे होते हैं, तो उनकी बात एक स्थानीय पत्रकार राकेश (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) सुन लेता है। राकेश इस खबर को छाप देता है, और देखते-देखते यह बात जंगल की आग की तरह फैल जाती है। पहले तो स्थानीय प्रशासन हरकत में आता है। जिला कलेक्टर और बीडीओ नत्था को एक “लाल बहादुर” यानी हैंडपंप दे देते हैं, ताकि मामला शांत हो। लेकिन जब यह खबर राष्ट्रीय अंग्रेजी न्यूज़ चैनलों तक पहुँचती है, तो पीपली गाँव एक सनसनी बन जाता है। मीडिया का पूरा काफिला पीपली पहुँच जाता है, और हर कोई नत्था की आत्महत्या की कहानी को अपने कैमरे में कैद करना चाहता है।

आईटीवीएन की पत्रकार नंदिता मलिक (नंदिता दास) इस कहानी को सनसनीखेज बनाकर अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाना चाहती है। वह राकेश के साथ मिलकर नत्था और उसके परिवार का इंटरव्यू लेने की कोशिश करती है, लेकिन नत्था की सादगी और उसकी मजबूरी को देखकर राकेश का मन पिघल जाता है। वह नंदिता से कहता है, “मैडम, ये खबर नहीं, एक इंसान की जिंदगी है।” लेकिन नंदिता ठंडे दिल से जवाब देती है, “हमारा काम खबर दिखाना है, भावनाओं में बहना नहीं।” दूसरी ओर, हिंदी न्यूज़ चैनल “भारत लाइव” का पत्रकार दीपक (विशाल ओ शर्मा) भी पीपली पहुँच जाता है, जो सीधे मुख्यमंत्री के करीबी है। दोनों चैनल आपस में भिड़ जाते हैं, और नत्था की मौत को लाइव दिखाने की होड़ मच जाती है।

इधर, राजनीतिक पार्टियाँ भी नत्था को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में जुट जाती हैं। सम्मान पार्टी को डर है कि अगर नत्था ने आत्महत्या कर ली, तो चुनाव में उनकी हार पक्की है। वे नत्था को तरह-तरह के लालच देते हैं ताकि वह आत्महत्या न करे। विपक्षी अपना दल और सीपीआई भी नत्था को अपने पाले में करने की कोशिश करते हैं। पीपली गाँव एक मेला बन जाता है—मीडिया, नेता, और गाँव वाले, सभी इस तमाशे का हिस्सा बन जाते हैं। नत्था, जो कभी गुमनाम था, अब पूरे मध्य प्रदेश की नज़रों में है। एक सीन में नत्था अपनी पत्नी धनिया से कहता है, “ये सब क्या तमाशा बन गया है, धनिया। मैं तो बस अपने बच्चों के लिए कुछ करना चाहता था।” धनिया गुस्से में जवाब देती है, “तुम्हारी ये बेवकूफी ने हमें सड़क पर ला दिया, नत्था!”

चरमोत्कर्ष: राजनीति का गंदा खेल और नत्था का भाग्य

जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, नत्था आत्महत्या नहीं करता, लेकिन दबाव बढ़ता जाता है। भाई ठाकुर, जिसे मुख्यमंत्री ने अब दरकिनार कर दिया है, नत्था को धमकी देता है कि अगर उसने दो दिन में आत्महत्या नहीं की, तो वह खुद उसे मार देगा। ठाकुर चाहता है कि नत्था की मौत का इल्ज़ाम मुख्यमंत्री पर लगे। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री खुद पीपली पहुँचते हैं और नत्था को एक लाख रुपये मुआवजे का वादा करते हैं, लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्री सलीम किदवई (नसीरुद्दीन शाह) इस पर आपत्ति जताते हैं और चुनाव आयोग को शिकायत कर देते हैं। नत्था फिर से मौत की कगार पर पहुँच जाता है।

इसी बीच, भाई ठाकुर नत्था का अपहरण कर लेता है और उसे एक खलिहान में बंधक बना लेता है। वह विपक्ष से पैसे ऐंठने की योजना बनाता है। लेकिन राकेश और दीपक को इसकी भनक लग जाती है। खलिहान में भीड़ जमा हो जाती है—मीडिया, गाँव वाले, विपक्षी नेता, सब नत्था को बचाने या अपनी-अपनी खबर बनाने के लिए टूट पड़ते हैं। इसी अफरा-तफरी में एक पेट्रोमैक्स लैंप से तेल गिर जाता है, और खलिहान में आग लग जाती है। इस हादसे में राकेश की मौत हो जाती है। प्रशासन गलती से राकेश को नत्था समझ लेता है और कहता है कि चूँकि यह हादसा है, इसलिए मुआवजा नहीं मिलेगा। नत्था का परिवार फिर से बेबस हो जाता है, और उनकी ज़मीन बैंक के हवाले हो जाती है।

निष्कर्ष: नत्था की नई शुरुआत और कड़वी सच्चाई

फिल्म का अंत दिल को झकझोर देने वाला है। नत्था असल में जिंदा है। वह इस तमाशे से भागकर गुरुग्राम पहुँच जाता है, जहाँ वह एक निर्माण स्थल पर मजदूर बनकर काम करने लगता है। उसकी जिंदगी पहले से भी बदतर हो जाती है, लेकिन वह जीवित है। फिल्म का आखिरी सीन हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या नत्था की कहानी सिर्फ एक गाँव की कहानी है, या यह पूरे देश के किसानों की व्यथा को दर्शाती है? एक डायलॉग जो इस सीन में फिट बैठता है, वह है, “जिंदगी ने हमें हर बार ठोकर मारी, पर हम फिर भी खड़े हैं।”

“पीपली लाइव” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक आईना है, जो हमें हमारी व्यवस्था की खामियों को दिखाता है। यह फिल्म हमें हँसाती है, लेकिन साथ ही हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी संवेदनशीलता मर चुकी है? नत्था की कहानी खत्म नहीं हुई, वह आज भी हमारे आसपास के हर उस किसान में जीवित है, जो व्यवस्था के चक्कर में पिस रहा है। एक डायलॉग के साथ इस रिकैप को खत्म करते हैं, जो फिल्म की थीम को बयान करता है, “सपने तो सब देखते हैं, पर हकीकत में सिर्फ धोखा मिलता है।”

तो दोस्तों, यह थी “पीपली लाइव” की कहानी। हमें बताइए कि आपको यह रिकैप कैसा लगा और क्या आपने इस फिल्म को देखा है? अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए, नमस्ते और ख्याल रखें। यह था आपका पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’। धन्यवाद!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

किसान मर जाएगा, तभी तो मीडिया के लिए कहानी बनेगी।

अरे भैया, यहाँ तो रोज़गार की ऐसी तैसी हो गई है।

आपका ध्यान किधर है, हमारा नेता उधर है।

किसान का मरना सिर्फ खबर है, गलती से जिंदा रह गया तो बवाल है।

गाँव में तो सब कुछ बिकाऊ है, भाई साहब।

गरीबी में आटा गीला, और ऊपर से ये सरकारी योजना।

यहाँ हर कोई सिर्फ अपनी रोटी सेंकने में लगा है।

टीवी पर सब कुछ दिखता है, लेकिन सच कुछ भी नहीं।

नेताओं के भाषण सुनकर तो भूख भी मिट जाती है।

जिंदगी एक तमाशा है, और हम सब सिर्फ दर्शक।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म “पीपली लाइव” 2010 में रिलीज़ हुई थी और इसे अनुषा रिज़वी ने निर्देशित किया था। यह फिल्म भारतीय ग्रामीण जीवन और मीडिया की भूमिका पर एक व्यंग्य है। इस फिल्म के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इसकी शूटिंग वास्तव में मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में की गई थी, जिससे फिल्म को वास्तविकता का स्पर्श मिला। फिल्म के निर्माता आमिर खान और किरण राव ने यह सुनिश्चित किया कि शूटिंग के दौरान गाँव के वातावरण को पूरी तरह से संजोया जाए, और इसीलिए फिल्म की पूरी टीम ने स्थानीय लोगों के साथ समय बिताया और उनकी जीवनशैली को समझा।

“पीपली लाइव” में कई ऐसे दृश्य हैं जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। फिल्म में एक दृश्य है जहाँ गाँव के किसान नत्था के आत्महत्या की खबर पर मीडिया का ध्यान जाता है। इस दृश्य के पीछे की कहानी यह है कि इसे वास्तविक समाचार कवरेज की तरह फिल्माया गया, जिससे दर्शकों को यह महसूस हो सके कि वे खुद भी उस भीड़ का हिस्सा हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल करके निर्देशक ने दर्शकों को मीडिया के अतार्किक व्यवहार पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।

फिल्म में कई ईस्टर एग्स छिपे हुए हैं जो ध्यान देने पर ही समझ में आते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म के कई पात्रों के नाम भारतीय राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं। यह नामकरण केवल मनोरंजन के लिए नहीं किया गया, बल्कि यह दर्शकों को भारतीय समाज की गहरी जड़ों और संरचनाओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा, फिल्म में इस्तेमाल किए गए गीत और संगीत भी कहानी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

फिल्म का मनोविज्ञान काफी गहरा है। यह फिल्म समाज के विभिन्न वर्गों के बीच की खाई को दिखाती है और दर्शाती है कि कैसे मीडिया किसी भी मुद्दे को सनसनी बना सकता है। “पीपली लाइव” दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि किस तरह से गरीबी, आत्महत्या और मीडिया कवरेज के मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। फिल्म का हर पात्र अपने आप में एक अध्ययन है, जो दर्शकों को मानव मन की जटिलताओं का अनुभव कराता है।

फिल्म ने रिलीज़ के बाद भारतीय सिनेमा में एक नई धारा की शुरुआत की। इसने यह साबित किया कि बिना बड़े सितारों के भी एक फिल्म दर्शकों के दिलों में जगह बना सकती है। “पीपली लाइव” ने कई पुरस्कार जीते और इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। इस फिल्म ने अन्य फिल्म निर्माताओं को प्रेरित किया कि वे भी सामाजिक मुद्दों पर आधारित कहानियाँ कहने में संकोच न करें।

फिल्म की विरासत आज भी जीवित है और यह भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। “पीपली लाइव” ने यह दिखाया कि कैसे एक सशक्त कहानी और उत्कृष्ट निर्देशन किसी भी फिल्म को यादगार बना सकते हैं। इस फिल्म ने यह भी साबित किया कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने वाला एक माध्यम भी हो सकता है।

🍿⭐ Reception & Reviews

अनुषा रिज़वी द्वारा निर्देशित, यह सटायरिकल ड्रामा नत्था (ओमकार दास मणिकपुरी) की कहानी है, जो किसानों की आत्महत्या पर मीडिया और राजनीति के खेल में फंस जाता है। फिल्म को इसके तीखे व्यंग्य, यथार्थवादी चित्रण, और सहायक कलाकारों (रघुबीर यादव) के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 4/5 रेटिंग दी, इसे “विडंबनापूर्ण और विचारोत्तेजक” कहा। रेडिफ ने इसके सामाजिक संदेश की तारीफ की। कुछ आलोचकों ने दूसरी छमाही की कमजोरी की शिकायत की, लेकिन दर्शकों ने इसके हास्य और संदेश को पसंद किया। यह भारत की ऑस्कर प्रविष्टि थी और बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। Rotten Tomatoes: 86%, IMDb: 7.4/10, Times of India: 4/5, Bollywood Hungama: 4/5।

Leave a Comment