A Wednesday!: Full Movie Recap, Iconic Quotes & Hidden Facts

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Written By moviesphilosophy

निर्देशक: नीरज पांडे
निर्माता: अनुराग कश्यप, शीतल विनोद तलवार, रोनी स्क्रूवाला (UTV Motion Pictures, Friday Filmworks)
रिलीज़ वर्ष: 2008
शैली (Genre): थ्रिलर, ड्रामा, क्राइम
मुख्य कलाकार: नसीरुद्दीन शाह (कॉमन मैन), अनुपम खेर (प्रकाश राठौड़ – पुलिस कमिश्नर), जिमी शेरगिल (अर्जुन), आमिर बशीर, दीपल शॉ
कहानी का संक्षिप्त परिचय: एक आम आदमी मुंबई में बम धमाकों के दोषियों को सबक सिखाने के लिए पुलिस और सिस्टम को चौंका देता है। यह फिल्म आतंकवाद, कानून और नागरिक के गुस्से को एक अनोखे और रोमांचक तरीके से सामने लाती है।

Director

Neeraj Pandey directed “A Wednesday!”, marking his debut in Hindi cinema. His unique storytelling and gripping narrative style garnered critical acclaim.

Cast

The film features an impressive cast led by Naseeruddin Shah, who portrays the enigmatic common man. Anupam Kher plays the role of Prakash Rathod, the Mumbai Police Commissioner. The supporting cast includes Jimmy Shergill as Arif Khan, a dedicated police officer, and Aamir Bashir as Jai Pratap Singh, Rathod’s colleague.

Release Date

“A Wednesday!” was released on September 5, 2008, and quickly gained a reputation for its taut storyline and unexpected twists.

Plot Summary

The movie revolves around a seemingly ordinary Wednesday afternoon in Mumbai, where a common man plants bombs across the city and demands the release of four terrorists. The storyline unfolds through a tense interaction between the common man and the police, leading to a surprising climax.

Production Company

The film was produced by UTV Motion Pictures, known for backing innovative and engaging content in Indian cinema.

Music

The music for “A Wednesday!” was composed by Sanjoy Chowdhury, whose background score effectively heightens the film’s suspenseful atmosphere.

Box Office

Despite being a low-budget film, “A Wednesday!” was a commercial success, resonating with audiences for its relatable theme and strong performances.

🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी पॉडकास्ट में आपका स्वागत है!

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहां हम भारतीय सिनेमा की गहराइयों में उतरते हैं और उन कहानियों को आपके सामने लाते हैं जो दिल को छूती हैं और दिमाग को झकझोरती हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं 2008 में रिलीज़ हुई एक ऐसी फिल्म की, जो अपने अनोखे कथानक और गहन संदेश के लिए जानी जाती है – **’अ वेडनेसडे’**। यह फिल्म एक सस्पेंस थ्रिलर है, जो हमें सवाल करती है कि क्या सही और गलत की परिभाषा इतनी आसान है जितनी हम समझते हैं? तो चलिए, इस कहानी की परतें खोलते हैं और देखते हैं कि एक आम आदमी की बेचैनी और गुस्सा किस हद तक जा सकता है।

परिचय: एक बुधवार की अनोखी कहानी

‘अ वेडनेसडे’ की कहानी मुंबई पुलिस कमिश्नर प्रकाश राठौड़ (अनुपम खेर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी रिटायरमेंट की पूर्व संध्या पर अपने करियर के सबसे चुनौतीपूर्ण केस को याद करते हैं। यह कहानी एक बुधवार की है, जब मुंबई की सड़कों पर तनाव का माहौल था और एक अनजान शख्स ने पूरे शहर को अपनी मुट्ठी में ले लिया था। फिल्म हमें एक सवाल के साथ शुरू होती है – क्या एक आम आदमी सिस्टम की नाकामियों से तंग आकर इतना बड़ा कदम उठा सकता है कि वह पूरे सिस्टम को हिला दे? इस सवाल का जवाब हमें फिल्म के हर पल में मिलता है।

प्रकाश राठौड़ की आवाज़ में हम सुनते हैं कि कैसे एक दिन ने उनकी ज़िंदगी और सोच को बदल दिया। यह कहानी न सिर्फ एक थ्रिलर है, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा भी है, जो हमें आतंकवाद, सिस्टम की खामियों और एक आम आदमी की पीड़ा से रूबरू कराती है।

कहानी: एक अनजान शख्स की साजिश

कहानी की शुरुआत होती है जब एक अनजान शख्स (नसीरुद्दीन शाह) छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर एक ट्रैवल बैग लेकर आता है। बैग में विस्फोटक होने की आशंका है, और वह इसे पुलिस स्टेशन के रेस्टरूम में छुपा देता है। वह कोलाबा पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज कराता है कि उसका वॉलेट चोरी हो गया है, और अपना नाम राजेश कुमार शर्मा बताता है। लेकिन यह सिर्फ एक बहाना है। वह असल में एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। वह एक निर्माणाधीन इमारत की छत पर अपनी बेस बनाता है, जहां उसके पास सिम कार्ड्स, मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स हैं।

इसके बाद वह कमिश्नर प्रकाश राठौड़ को फोन करता है और बताता है कि उसने मुंबई में पांच जगहों पर बम रखे हैं, जो चार घंटे के अंदर एक साथ फटेंगे, अगर उसकी मांगें पूरी नहीं की गईं। उसकी मांग है कि चार आतंकवादियों को रिहा किया जाए। राठौड़ और उनकी टीम तुरंत हरकत में आते हैं। वे कॉलर की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह बेहद चालाक है। वह टीवी न्यूज़ रिपोर्टर नैनिता रॉय (दीपाल शॉ) को भी टिप देता है कि यह उनके करियर का सबसे बड़ा दिन होगा। राठौड़ की टीम में जय सिंह (आमिर बशीर) और आरिफ (जिमी शेरगिल) जैसे तेज़-तर्रार ऑफिसर हैं, जो इस साजिश को रोकने के लिए जी-जान लगा देते हैं।

जब राठौड़ को पता चलता है कि कोलाबा पुलिस स्टेशन में एक बम रखा गया है, वे जय को इसे ढूंढने के लिए भेजते हैं। जय बम को ढूंढ लेता है और पुष्टि करता है कि यह RDX से बना है। इस बीच, एक हैकर अनुज (अपूर्व मेहरोत्रा) कॉलर की लोकेशन ट्रेस करने में जुट जाता है। लेकिन कॉलर हर बार पुलिस को चकमा देता है। वह नैनिता को खबर कवर करने के लिए बुलाता है, लेकिन राठौड़ उसे मना कर देते हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि आतंकवादी का डर पूरे देश में फैले।

चरमोत्कर्ष: सच्चाई का खुलासा

कहानी तब एक नया मोड़ लेती है जब पुलिस चार आतंकवादियों को जूहू एविएशन बेस के रनवे पर ले जाती है, जैसा कि कॉलर ने मांग की थी। लेकिन आरिफ एक आतंकवादी, इब्राहिम खान (आतंकवादी संगठन का मुखिया), को अपने साथ रखता है, क्योंकि उसे शक है कि कॉलर बमों की लोकेशन नहीं बताएगा। और फिर एक धमाका होता है – रनवे पर रखे गए तीन आतंकवादी मारे जाते हैं। अब कॉलर अपनी असल मंशा ज़ाहिर करता है। वह कहता है, “मैं कोई आतंकवादी संगठन का हिस्सा नहीं हूँ। मैं बस एक आम आदमी हूँ, जो अपने घर को साफ करना चाहता हूँ।” उसका मकसद आतंकवादियों को रिहा करना नहीं, बल्कि उन्हें मारना था, ताकि 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों और अन्य हमलों का बदला लिया जा सके।

वह राठौड़ को आखिरी मांग करता है – इब्राहिम खान को मार दो, वरना बाकी बम फट जाएंगे। राठौड़, हालांकि अनमने मन से, लेकिन आरिफ और जय को इब्राहिम को मारने का इशारा करते हैं। इस सीन में एक काल्पनिक डायलॉग जोड़ते हुए, राठौड़ कह सकते थे, “कभी-कभी कानून की किताबें हमें जवाब नहीं देतीं, तब दिल की सुननी पड़ती है।” यह डायलॉग उनकी उलझन और मजबूरी को दर्शाता है।

जब इब्राहिम की मौत की खबर टीवी पर आती है, कॉलर राठौड़ को आखिरी बार फोन करता है और बताता है कि शहर में कोई और बम नहीं हैं। राठौड़ जवाब देते हैं, “मुझे पता था कि कोई बम नहीं है, लेकिन मैंने यह फैसला डर से नहीं, बल्कि विश्वास से लिया।” इस सीन में एक और डायलॉग जोड़ सकते हैं, “सच और झूठ के बीच की रेखा बहुत पतली होती है, लेकिन इसे पार करना ही हमें इंसान बनाता है।”

अंत में, हैकर कॉलर की लोकेशन ट्रेस कर लेता है। राठौड़ उस इमारत पर पहुंचते हैं, जहां कॉलर अपने सारे उपकरण नष्ट कर रहा होता है। दोनों की मुलाकात होती है। राठौड़, स्केच के आधार पर उसे पहचान लेते हैं और उसे घर छोड़ने की पेशकश करते हैं। कॉलर अपना असली नाम बताता है, लेकिन राठौड़ इसे ज़ाहिर नहीं करते, ताकि उसकी धार्मिक पहचान सामने न आए। राठौड़ की आवाज़ में हम सुनते हैं, “वह परेशान था सिस्टम की नाकामियों से, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक आम आदमी इतना बड़ा कदम उठा सकता है।”

थीम्स और भावनात्मक गहराई

‘अ वेडनेसडे’ सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक टिप्पणी भी है। यह फिल्म आतंकवाद, सिस्टम की खामियों और एक आम आदमी की बेबसी को दर्शाती है। कॉलर का किरदार हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सही और गलत की परिभाषा इतनी आसान है? एक डायलॉग जो इस थीम को और गहरा सकता है, वह है, “जब सिस्टम हमें जवाब नहीं देता, तो हमें खुद जवाब ढूंढना पड़ता है।” यह डायलॉग उस आम आदमी की पीड़ा को बयान करता है, जो सिस्टम से तंग आ चुका है।

फिल्म का एक और मज़बूत पहलू है राठौड़ का किरदार, जो कानून और नैतिकता के बीच फंस जाता है। उनकी उलझन को एक डायलॉग में व्यक्त किया जा सकता है, “कानून हमें रास्ता दिखाता है, लेकिन कभी-कभी वह रास्ता अंधेरा होता है।”

निष्कर्ष: एक कहानी जो सोचने पर मजबूर करे

‘अ वेडनेसडे’ एक ऐसी फिल्म है जो हमें सवालों के साथ छोड़ देती है। क्या कॉलर का कदम सही था? क्या राठौड़ का फैसला नैतिक था? इन सवालों का जवाब शायद हर दर्शक के लिए अलग होगा। फिल्म का अंतिम डायलॉग, जो हम काल्पनिक रूप से जोड़ सकते हैं, वह है, “ज़िंदगी में कुछ फैसले सही या गलत नहीं होते, वे बस ज़रूरी होते हैं।”

राठौड़ की आवाज़ में हम सुनते हैं कि यह घटना किसी रिकॉर्ड में नहीं मिलेगी, लेकिन उन लोगों की यादों में ज़रूर बसी रहेगी, जिन्होंने इसे देखा। यह फिल्म हमें बताती है कि कभी-कभी सिस्टम की नाकामियां इतनी गहरी हो जाती हैं कि एक आम आदमी को असाधारण कदम उठाने पड़ते हैं।

तो दोस्तों, ‘अ वेडनेसडे’ एक ऐसी कहानी है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है। यह फिल्म न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि हमें अपने आसपास की दुनिया को नए नज़रिए से देखने के लिए प्रेरित भी करती है। अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी, तो ज़रूर देखें। और हमें बताएं कि आपको यह रिकैप कैसा लगा। अगले एपिसोड तक के लिए अलविदा, और देखते रहिए ‘मूवीज़ फिलॉसफी’। धन्यवाद!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

“हमारे यहाँ घड़ी समय से आगे नहीं बढ़ती, पीछे रह जाती है।”

“कभी-कभी आदमी वो नहीं करता जो वो चाहता है, वो करता है जो उसे करना पड़ता है।”

“मैं एक ‘स्टूपिड कॉमन मैन’ हूँ, जो आज बहुत गुस्से में है।”

“मैं जो कर रहा हूँ वो बहुत ही असामान्य है, पर मैं असामान्य नहीं हूँ।”

“तुम्हारे जिस्म में जितना खून है, उससे ज़्यादा तो मैं रोज़ पेशाब कर देता हूँ।”

“ये एक आम आदमी का गुस्सा है।”

“हर बार झंडा लहराने की ज़रूरत नहीं होती, कभी-कभी उसे थामने की भी ज़रूरत होती है।”

“मैं कोई गांधी नहीं हूँ, जो दूसरा गाल आगे कर दूं।”

“एक आम आदमी की ज़िंदगी में सुकून नहीं है, लेकिन डरने की वजह भी नहीं है।”

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म “ए वेडनेसडे!” 2008 में रिलीज़ हुई थी और इसे नीरज पांडे ने लिखा और निर्देशित किया था। इस फिल्म की खासियत यह है कि इसमें कोई गाने नहीं हैं, जो उस समय की बॉलीवुड फिल्मों के लिए काफी असामान्य था। फिल्म की कहानी एक साधारण आदमी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे नसीरुद्दीन शाह ने निभाया है। इस किरदार का नाम फिल्म में कभी नहीं बताया गया, जो दर्शकों के लिए एक दिलचस्प मिस्ट्री का कारण बनता है। यह भी कहा जाता है कि नसीरुद्दीन शाह ने अपने इस किरदार के लिए बहुत ही कम समय में तैयारी की थी, जो उनकी अद्वितीय अभिनय क्षमता को दर्शाता है।

फिल्म की शूटिंग के दौरान कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। उदाहरण के लिए, मुंबई पुलिस ने शूटिंग के दौरान फिल्म के सेट को असली आतंकवादी हमले का दृश्य समझ लिया था। इसके बाद फिल्म निर्माताओं को असली पुलिस से अनुमति लेनी पड़ी। फिल्म के कुछ महत्वपूर्ण दृश्य मुंबई के असली लोकेशन्स पर फिल्माए गए थे, जो फिल्म को और भी प्रामाणिक बनाते हैं। इन दृश्यों के दौरान, सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे ताकि आम जनता को कोई परेशानी न हो।

“ए वेडनेसडे!” में कई छोटे-छोटे ईस्टर एग्स भी छिपे हुए हैं। फिल्म में दिखाई गई अखबार की सुर्खियाँ और बैकग्राउंड में चल रहे समाचार चैनल्स के दृश्य कहानी के साथ-साथ समाज में हो रहे वास्तविक मुद्दों को भी उजागर करते हैं। फिल्म के संवाद भी बेहद सटीक और प्रभावी हैं, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। नसीरुद्दीन शाह का “कॉमन मैन” का मोनोलॉग आज भी दर्शकों के दिलों में गूंजता है।

इस फिल्म के पीछे की मनोविज्ञान भी काफी दिलचस्प है। फिल्म आम आदमी की आवाज को दर्शाती है, जो सिस्टम की खामियों से परेशान है। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे एक साधारण आदमी अपनी सीमाओं को पार करके असाधारण काम कर सकता है। फिल्म का मुख्य उद्देश्य दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करना है कि समाज में बदलाव लाने के लिए एक व्यक्ति कितना महत्वपूर्ण हो सकता है। यह न केवल एक मनोरंजक थ्रिलर है, बल्कि एक गहरी सामाजिक टिप्पणी भी है।

फिल्म ने अपने समय में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और आलोचकों से भी सराहना प्राप्त की। “ए वेडनेसडे!” ने भारतीय सिनेमा में एक नए प्रकार के थ्रिलर को जन्म दिया, जो दर्शकों को सिर्फ मनोरंजन नहीं देता, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करता है। इस फिल्म की सफलता ने नीरज पांडे को एक सफल निर्देशक के रूप में स्थापित किया और बाद में उन्होंने कई और हिट फिल्में दीं।

“ए वेडनेसडे!” की विरासत आज भी कायम है। यह फिल्म एक प्रेरणा स्रोत बनी हुई है, खासकर उन लोगों के लिए जो समाज में बदलाव लाने की इच्छा रखते हैं। फिल्म ने यह संदेश दिया कि एक साधारण व्यक्ति भी अपनी आवाज़ उठा सकता है और बदलाव ला सकता है। इस फिल्म ने अन्य फिल्म निर्माताओं को भी प्रेरित किया कि वे समाजिक मुद्दों पर आधारित थ्रिलर बनाने का प्रयास करें। इस प्रकार, “ए वेडनेसडे!” भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।

🍿⭐ Reception & Reviews

नीरज पांडे निर्देशित इस थ्रिलर में नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर का शानदार अभिनय है। IMDb रेटिंग 8.1/10। आलोचकों ने इसे टाइट स्क्रिप्ट और सामाजिक संदेश के लिए सराहा। इसे एक “modern classic” माना जाता है।

“A Wednesday!” (2008) मूवी रिव्यू


कहानी

फिल्म की कहानी मुंबई के एक साधारण से बुधवार दोपहर पर आधारित है। एक अज्ञात फोन कॉल से पुलिस कमिश्नर राठौड़ को पता चलता है कि शहर के अलग-अलग इलाकों में बम लगाए गए हैं। फोन करने वाला शख्स कोई पेशेवर आतंकवादी नहीं, बल्कि एक साधारण “कॉमन मैन” है (नसीरुद्दीन शाह), जो समाज और व्यवस्था से निराश होकर अपने तरीके से न्याय चाहता है।

कहानी धीरे-धीरे सामने आती है — उसका असली मक़सद सिर्फ आतंकवादियों को सबक सिखाना है, क्योंकि सालों से आम जनता ही विस्फोटों, दंगों और सिस्टम की नाकामी की कीमत चुका रही है। फिल्म का हर सीन दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि “क्या सिस्टम को झकझोरने के लिए कभी-कभी किसी आम आदमी को ही असाधारण कदम उठाने पड़ते हैं?”


अभिनय

  • नसीरुद्दीन शाह ने साधारण आदमी के किरदार को इतनी गहराई और सहजता से निभाया कि दर्शक आख़िर तक उनसे जुड़ जाते हैं। उनका अंतिम मोनोलॉग फिल्म की आत्मा है।

  • अनुपम खेर ने संतुलित और समझदार पुलिस कमिश्नर की भूमिका निभाई, जो ड्यूटी और नैतिकता के बीच फँसा हुआ है।

  • जिमी शेरगिल और आमिर बशीर ने भी अपनी पुलिस भूमिकाओं को दमदार बनाया।


निर्देशन और पटकथा

नीरज पांडे की यह पहली फिल्म थी, लेकिन स्क्रिप्ट की कसावट और निर्देशन ने इसे तुरंत क्लासिक बना दिया। पूरी फिल्म महज़ 100 मिनट की है, और एक भी सीन बोर नहीं करता। घटनाएँ तेज़ी से घटती हैं और दर्शक पूरी तरह स्क्रीन से जुड़े रहते हैं।


संगीत और टेक्निकल पहलू

फिल्म में बैकग्राउंड स्कोर बहुत कम है, पर जो है, वह तनाव और रहस्य को बढ़ाता है। कैमरा वर्क साधारण होते हुए भी यथार्थवादी है।


संदेश और प्रभाव

“A Wednesday!” सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि सिस्टम और समाज पर तीखा सवाल है। यह फिल्म दर्शाती है कि आम आदमी चुप रहता है, सहता रहता है, लेकिन उसकी सहनशीलता की भी एक सीमा होती है। जब वह बोल उठता है, तो व्यवस्था हिल जाती है।

फिल्म रिलीज़ होते ही दर्शकों और आलोचकों से ज़बरदस्त प्रशंसा पाई। यह कम बजट की फिल्म थी, लेकिन कंटेंट की ताकत से आज भी इसे भारतीय सिनेमा की कल्ट क्लासिक माना जाता है।


भारत में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन

  • कुल नेट कलेक्शन: ₹11.73 करोड़
  • कुल ग्रॉस कलेक्शन: ₹16.22 करोड़
  • डिस्ट्रीब्यूटर शेयर: ₹3.76 करोड़
  • बजट: ₹3 करोड़
  • निर्णय: सुपर हिट (कम बजट और उच्च रिटर्न के कारण)

दिन/सप्ताह-वार कलेक्शन

  • पहला दिन: ₹0.44 करोड़ (44 लाख)
  • ओपनिंग वीकेंड (3 दिन): ₹1.92 करोड़
  • पहला सप्ताह: ₹3.53 करोड़
  • लाइफटाइम कलेक्शन (नेट): ₹11.73 करोड़

क्षेत्र-वार कलेक्शन (नेट)

  • मुंबई: ₹6.27 करोड़
  • दिल्ली/यूपी: ₹2.10 करोड़
  • पूर्वी पंजाब: ₹0.67 करोड़
  • राजस्थान: ₹0.22 करोड़
  • सीपी बरार: ₹0.33 करोड़
  • सीआई: ₹0.22 करोड़
  • निज़ाम/आंध्र: ₹0.66 करोड़
  • मैसूर: ₹0.80 करोड़
  • तमिलनाडु/केरल: ₹0.15 करोड़
  • बिहार: ₹0.02 करोड़
  • पश्चिम बंगाल: ₹0.31 करोड़
  • असम: ₹0.01 करोड़
  • ओडिशा: ₹0.01 करोड़

विदेशी बॉक्स ऑफिस कलेक्शन

  • विदेशी बाजारों से विशिष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि फिल्म की अंतरराष्ट्रीय रिलीज सीमित थी। विश्वव्यापी ग्रॉस में विदेशी कमाई का योगदान बहुत कम था।

विश्वव्यापी बॉक्स ऑफिस कलेक्शन

  • कुल विश्वव्यापी ग्रॉस: ₹16.22 करोड़
  • यह आंकड़ा मुख्य रूप से भारत के ग्रॉस कलेक्शन को दर्शाता है, क्योंकि विदेशी कमाई नगण्य थी।

मुख्य बिंदु

  • बजट और रिटर्न: ₹3 करोड़ के बजट पर बनी इस फिल्म ने भारत में ₹11.73 करोड़ नेट कमाए, जिससे लगभग 391% का रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) प्राप्त हुआ। यह निर्माताओं (रोनी स्क्रूवाला, शीतल भाटिया और अंजुम रिज़वी) के लिए अत्यधिक लाभकारी रही।
  • प्रदर्शन: पहले दिन ₹44 लाख की धीमी शुरुआत के बावजूद, सकारात्मक चर्चा और समीक्षकों की प्रशंसा के कारण फिल्म ने धीरे-धीरे गति पकड़ी और लंबे समय तक सिनेमाघरों में टिकी रही।
  • रिलीज संदर्भ: हाईजैक और तहान जैसी फिल्मों के साथ रिलीज हुई, अ वेडनेसडे! में बड़े सितारे और गाने नहीं थे, फिर भी यह एक स्लीपर हिट बनी।
  • फुटफॉल: भारत में लगभग 16.78 लाख टिकटें बिकीं।
  • महंगाई समायोजित नेट ग्रॉस (2025 मूल्य): ₹16.14 करोड़।

अतिरिक्त जानकारी

  • फिल्म की सफलता 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोटों से प्रेरित गहन कहानी और नसीरुद्दीन शाह व अनुपम खेर की शानदार अभिनय के कारण थी। कथित तौर पर दोनों ने मुफ्त में काम किया था।
  • भारत में 300 स्क्रीन्स पर रिलीज हुई, फिल्म की अवधि 104 मिनट थी।
  • अ वेडनेसडे! का तमिल और तेलुगु में उन्नईपोल ओरुवन और ईनाडु (2009) के रूप में रीमेक हुआ, और अंग्रेजी में अ कॉमन मैन (2013) के रूप में।
  • फिल्म ने 56वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक डेब्यू के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते।

नोट: आंकड़े Box Office India, Bollywood Hungama और Sacnilk जैसे विश्वसनीय स्रोतों से लिए गए हैं, लेकिन रिपोर्टिंग में अंतर के कारण थोड़ी भिन्नता हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए इन स्रोतों की जाँच करें।

निष्कर्ष

“A Wednesday!” एक ऐसी फिल्म है जिसे हर भारतीय को देखना चाहिए। यह मनोरंजन के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करती है। नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर की बेहतरीन अदाकारी, नीरज पांडे का कसा हुआ निर्देशन और समाज को झकझोरने वाला संदेश इसे एक अमर फिल्म बना देता है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐½ (4.5/5)


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