Director
“Drishyam 2” in Hindi is directed by Abhishek Pathak. Known for his adept storytelling and attention to detail, Pathak takes the reins from the original Malayalam version’s director, Jeethu Joseph, to bring this gripping tale to the Hindi-speaking audience.
Cast
The film features an ensemble cast led by Ajay Devgn, who reprises his role as the shrewd and resilient Vijay Salgaonkar. Accompanying him are Tabu, playing the formidable IG Meera Deshmukh, and Shriya Saran, who returns as Nandini Salgaonkar, Vijay’s supportive wife. The film also introduces Akshaye Khanna in a pivotal role, adding a new layer of intrigue to the narrative.
Production
“Drishyam 2” is produced by Bhushan Kumar, Kumar Mangat Pathak, Abhishek Pathak, and Krishan Kumar under the banners of T-Series and Panorama Studios. The production maintains the suspense and intensity of the original while adapting it to the sensibilities of the Hindi audience.
Music
The film’s music is composed by Devi Sri Prasad, known for his ability to create memorable soundtracks that enhance the emotional and narrative depth of the films he works on. His score for “Drishyam 2” complements the film’s tense and suspenseful atmosphere.
Plot Overview
As a sequel to the 2015 hit “Drishyam,” this film continues the story of Vijay Salgaonkar and his family, as they navigate new threats and challenges following the events of the first film. The plot delves deeper into the consequences of the family’s past actions and the lengths Vijay will go to protect them.
🎙️🎬Full Movie Recap
मूवीज़ फिलॉसफी में आपका स्वागत है!
नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहाँ हम भारतीय सिनेमा की गहराइयों में उतरते हैं और कहानियों को उनके भावनात्मक और दार्शनिक पहलुओं के साथ आपके सामने पेश करते हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी फिल्म की, जो न केवल एक क्राइम थ्रिलर है, बल्कि परिवार, बलिदान और नैतिकता की जटिलताओं को भी बखूबी दर्शाती है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं फिल्म **दृश्यम 2** की, जो 2015 की सुपरहिट फिल्म **दृश्यम** का सीक्वल है। इस फिल्म में अजय देवगन, श्रिया सरन, तब्बू और अक्षय खन्ना जैसे दिग्गज कलाकारों ने अपनी शानदार अदाकारी से कहानी को जीवंत कर दिया है। तो चलिए, बिना देर किए, डूबते हैं इस रहस्यमयी और भावनात्मक कहानी में।
परिचय: एक परिवार की जंग
दृश्यम 2** हमें उसी जगह ले जाता है, जहाँ पहली फिल्म खत्म हुई थी। विजय सालगांवकर (अजय देवगन) एक साधारण केबल ऑपरेटर से एक सफल बिजनेसमैन बन चुका है। उसने एक सिनेमा हॉल खरीदा है और अब उसका सपना है कि वह अपनी खुद की फिल्म बनाए। उसकी पत्नी नंदिनी (श्रिया सरन), बेटी अंजू (इशिता दत्ता) और छोटी बेटी अनु (मृणाल जाधव) के साथ उसकी जिंदगी सतह पर तो खुशहाल दिखती है, लेकिन अंदर ही अंदर एक डर और रहस्य उसे खाए जा रहा है। अंजू को PTSD और मिर्गी के दौरे हैं, जो सैम की मौत से जुड़े उस भयानक हादसे की याद दिलाते हैं। इधर, सैम के माता-पिता मीराबेन (तब्बू) और महेश (रजत कपूर) अपने बेटे की मौत का सच जानने के लिए बेकरार हैं। पुलिस के नए इंस्पेक्टर जनरल तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना) इस केस को फिर से खोलते हैं और विजय के परिवार पर शिकंजा कसना शुरू करते हैं। क्या विजय इस बार भी अपने परिवार को बचा पाएगा? यही इस कहानी का मूल सवाल है।
कहानी: रहस्य की परतें
कहानी सात साल बाद शुरू होती है, जब विजय की जिंदगी में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है। लेकिन अतीत का भूत फिर से सामने आता है, जब सैम की मौत की बरसी पर महेश विजय से अपने बेटे की लाश की जगह बताने की गुहार लगाता है। विजय चुप रहता है, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरा डर साफ दिखता है। वह अपने परिवार को बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है, और यह भावना फिल्म का केंद्र बिंदु है। इधर, नंदिनी अपनी पड़ोसन जेनी (नेहा जोशी) से अपने दिल की बातें साझा करती है, लेकिन उसे क्या पता कि जेनी और उसका पति शिव (निशांत सिंह) वास्तव में अंडरकवर पुलिसवाले हैं। नंदिनी अनजाने में जेनी को बता देती है कि सैम की मौत अंजू के हाथों हुई थी और विजय ने अगले ही दिन लाश को ठिकाने लगा दिया था। यह खुलासा पुलिस को एक नया सुराग देता है।
तरुण अहलावत, जो मीराबेन का पुराना दोस्त और सहकर्मी है, इस केस को सुलझाने के लिए जी-जान लगा देता है। वह विजय के घर के आसपास 45 किलोमीटर के दायरे में उस रात की हर गतिविधि की जाँच करता है। उसे पता चलता है कि विजय उस रात 4 बजे घर लौटा था, और उसके पास लाश को ठिकाने लगाने के लिए सिर्फ 4.5 घंटे का समय था। उसी दौरान, एक पुराना गवाह डेविड ब्रजाग्ना (सिद्धार्थ बोडके), जो सात साल पहले हत्या के इल्जाम में जेल में था, छूटकर बाहर आता है। डेविड को याद आता है कि उसने विजय को उसी रात एक निर्माणाधीन पुलिस स्टेशन से निकलते देखा था। वह पुलिस को यह जानकारी देता है, और पुलिस उस जगह की खुदाई शुरू करती है।
यहाँ कहानी में एक ट्विस्ट आता है। पुलिस को एक कंकाल मिलता है, और विजय, जो अपने सीसीटीवी कैमरों से सब देख रहा होता है, लगभग हार मान लेता है। पुलिस विजय और उसके परिवार को पूछताछ के लिए बुलाती है। मीराबेन के पास नंदिनी की स्वीकारोक्ति की रिकॉर्डिंग होती है, जो पुलिस ने उनके घर में बग लगाकर रिकॉर्ड की थी। पुलिस की बेरहमी से अंजू को दौरा पड़ जाता है, और विजय टूट जाता है। वह झूठा कबूलनामा दे देता है कि उसने सैम को मार डाला। यहाँ एक डायलॉग जो विजय बोलता है, वह दिल को छू जाता है: **”मेरे परिवार के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ, चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।”**
चरमोत्कर्ष: दिमाग का खेल
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। विजय का स्क्रिप्ट राइटर मुराद अली (सौरभ शुक्ला) पुलिस के पास आता है और एक चौंकाने वाला खुलासा करता है। वह बताता है कि विजय ने सैम की मौत के आधार पर एक क्राइम थ्रिलर की स्क्रिप्ट लिखी थी, जिसे ‘दृश्यम’ नाम से एक नॉवेल के रूप में प्रकाशित किया गया था। विजय के वकील दावा करते हैं कि पुलिस ने इसी स्क्रिप्ट को आधार बनाकर विजय को फंसाया है। और फिर एक बड़ा ट्विस्ट आता है – कंकाल का डीएनए सैम से मेल नहीं खाता। मुराद बताता है कि विजय ने अपनी स्क्रिप्ट में एक वैकल्पिक क्लाइमेक्स लिखा था, जिसमें नायक एक और शव को सैम की जगह रख देता है। उसने स्थानीय कब्रिस्तान के ग्रेवडिगर और मेडिकल कॉलेज के गार्ड को अपने पक्ष में कर लिया था, ताकि वह शवों की अदला-बदली कर सके।
यहाँ एक और डायलॉग जो मुराद बोलता है, वह कहानी की गहराई को दर्शाता है: **”सच और झूठ के बीच का फासला सिर्फ एक कहानी का होता है।”** विजय को सबूतों के अभाव में जमानत मिल जाती है, और पुलिस को उसके परिवार की जाँच करने से मना कर दिया जाता है। जज तरुण को कहता है कि दोनों परिवारों को न्याय चाहिए, लेकिन कानूनी व्यवस्था इसमें असमर्थ है।
निष्कर्ष: भावनात्मक समापन
फिल्म का अंत भावनात्मक और विचारोत्तेजक है। मुराद, मीराबेन और महेश को बताता है कि विजय की स्क्रिप्ट में एक आखिरी ट्विस्ट था, जिसमें नायक खलनायक की अस्थियाँ पीड़ित माता-पिता को सौंप देता है। उसी समय, विजय गुप्त रूप से सैम की राख मीराबेन और महेश को भिजवा देता है। महेश सैम की अस्थियों को विसर्जित करता है और मीराबेन को समझाता है कि अब उन्हें विजय के प्रति दुश्मनी छोड़ देनी चाहिए। वह कहता है, **”कभी-कभी माफी माँगने से ज्यादा जरूरी होता है माफ कर देना।”**
विजय दूर से यह सब देखता है और चुपचाप वहाँ से चला जाता है। यह दृश्य हमें सोचने पर मजबूर करता है कि परिवार की रक्षा के लिए क्या सही है और क्या गलत। विजय का किरदार हमें यह सिखाता है कि **”जिंदगी में कुछ फैसले दिल से लिए जाते हैं, दिमाग से नहीं।”** और अंत में एक आखिरी डायलॉग जो इस फिल्म की थीम को समेटता है: **”सच को छुपाना जितना मुश्किल है, उसे स्वीकार करना उससे भी ज्यादा कठिन है।”**
अंतिम विचार
दृश्यम 2** सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं है; यह एक परिवार की कहानी है, जो हमें नैतिकता, बलिदान और सच्चाई की जटिलताओं से रूबरू कराती है। विजय सालगांवकर का किरदार हमें यह सिखाता है कि प्यार और रक्षा की खातिर इंसान कितना कुछ कर सकता है। अजय देवगन की अभिनय क्षमता, तब्बू की गहन भावनाएँ, और अक्षय खन्ना की तीक्ष्ण बुद्धि इस फिल्म को अविस्मरणीय बनाते हैं। यह फिल्म हमें यह भी सवाल करने पर मजबूर करती है कि क्या सच हमेशा सामने आना चाहिए, या कभी-कभी इसे छुपाना ही बेहतर होता है?
तो दोस्तों, यह थी **दृश्यम 2** की कहानी। हमें बताइए कि आपको यह रिकैप कैसा लगा और इस फिल्म ने आपके मन में कौन से विचार जगाए। अगले एपिसोड तक के लिए अलविदा, और देखते रहिए अच्छी फिल्में, क्योंकि हर फिल्म में छुपा होता है एक सबक। **मूवीज़ फिलॉसफी** से फिर मिलेंगे! नमस्ते!
🎥🔥Best Dialogues and Quotes
️♂️ Best Dialogues from Drishyam 2 – in Hindi
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“सच्चाई वो नहीं होती जो दिखती है… सच्चाई वो होती है जिसे साबित किया जा सके।” – विजय सलगांवकर
फिल्म की थीम को परिभाषित करता है — perception vs proof। -
“मेरे परिवार को छूने से पहले… सबूत सोच लेना।”
विजय का सख्त और डरा देने वाला अंदाज़। -
“एक बाप अपने बच्चों के लिए क्या कर सकता है… इसकी कोई सीमा नहीं होती।”
पिता की हद से भी आगे बढ़ी हुई सुरक्षा भावना। -
“6 साल पहले जो हुआ, वो भूले नहीं… बस दफना दिया गया।” – मीरा देशमुख
तब्बू के किरदार की वापसी के साथ पुराना दर्द भी लौट आया। -
“हर कहानी का क्लाइमैक्स होता है… लेकिन ये क्लाइमैक्स तुमने सोचा भी नहीं होगा।”
जब विजय अपने आखिरी पत्ते खेलता है। -
“अगर मैंने जुर्म किया होता… तो आपको कभी पता ही नहीं चलता।” – विजय
चालाकी से भरा हुआ आत्मविश्वास। -
“हर कहानी में ट्विस्ट होता है… और ये मेरी कहानी है।”
क्लासिक विजय सलगांवकर मूव।
फिल्म की खासियत:
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डायलॉग्स सीधे-सादे हैं लेकिन गहरी चाल और emotional depth से भरे हैं।
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अजय देवगन का अंडरस्टेटेड परफॉर्मेंस हर लाइन को वजन देता है।
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कोर्टरूम, पुलिस स्टेशन, और परिवार के इमोशनल सीन्स में संवाद ही weapon हैं।
🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia
फिल्म “दृश्यम 2” ने अपने पहले भाग की तरह ही दर्शकों को रोमांचित किया, लेकिन इसके पीछे कई ऐसे रहस्य हैं जो दर्शकों की नजरों से छिपे हुए हैं। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान, निर्देशक जीतू जोसेफ ने सेट पर एक बहुत ही शांत और समर्पित माहौल बनाए रखा। यह कहा जाता है कि प्रमुख अभिनेता मोहनलाल ने अपनी भूमिका को और अधिक सजीव बनाने के लिए कई बार बिना स्क्रिप्ट के खुद से संवाद जोड़े। उनकी इस सहजता ने फिल्म में उनके किरदार को और भी प्रभावशाली बना दिया। इसके अलावा, फिल्म की शूटिंग वास्तविक स्थानों पर ही की गई थी, जिससे दर्शकों को एक वास्तविकता का अहसास होता है।
जब बात करें फिल्म में छिपे ईस्टर एग्स की, तो “दृश्यम 2” में कई छोटे-छोटे संकेत और प्रतीकात्मक तत्व दर्शकों के लिए छिपे हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म की शुरुआत में दिखाए गए कुछ दृश्य बाद में कहानी के मोड़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दृश्य दर्शकों को फिल्म के दौरान सतर्क रहने पर मजबूर करते हैं। जोसेफ ने जानबूझकर इन संकेतों को इस तरह से प्रस्तुत किया है कि दर्शक उन्हें पहली बार देखने पर नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन फिर से देखने पर ये पूरी तरह से नए अर्थ दे सकते हैं।
फिल्म के मनोविज्ञान पर गौर करें तो यह देखा जा सकता है कि “दृश्यम 2” केवल एक अपराध कहानी नहीं है, बल्कि यह मानवीय मानसिकता और उसके जटिलताओं की गहराई में झांकने का प्रयास करती है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक साधारण परिवार अपनी सुरक्षा के लिए जटिल चालें चलता है। यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि नैतिकता और परिवार की सुरक्षा के बीच की रेखा कितनी धुंधली हो सकती है। इसके अलावा, फिल्म यह भी दर्शाती है कि कैसे हर व्यक्ति के पास अपनी खुद की सच्चाई होती है, जो परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।
फिल्म की कहानी के साथ-साथ इसके निर्माण में भी कुछ दिलचस्प पहलू हैं। “दृश्यम 2” का संपादन और संगीत भी इसके सफल होने के पीछे के मुख्य कारणों में से एक है। फिल्म के संपादक ने कहानी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए बहुत ही सावधानीपूर्वक काम किया। वहीं, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कहानी की गंभीरता और तनाव को और भी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ। यह संगीत दर्शकों को कहानी में पूरी तरह से डूब जाने में मदद करता है।
“दृश्यम 2” ने न केवल अपने दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी, बल्कि इसने भारतीय सिनेमा में क्राइम थ्रिलर फिल्मों के लिए एक नया मानदंड स्थापित किया। इस फिल्म ने यह साबित कर दिया कि एक सशक्त कहानी और उत्कृष्ट अभिनय के साथ किसी भी बजट की फिल्म दर्शकों का दिल जीत सकती है। इस फिल्म की सफलता ने अन्य फिल्म निर्माताओं को भी प्रेरित किया है कि वो अपनी कहानी कहने के तरीकों में नवाचार लाएं और दर्शकों को एक नई दृष्टि दें।
अंततः, “दृश्यम 2” की विरासत केवल एक फिल्म के रूप में नहीं, बल्कि एक अनुभव के रूप में जानी जाएगी। यह फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है और यह दिखाती है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण परिस्थितियों में खुद को ढाल सकता है। “दृश्यम 2” की कहानी और इसके पीछे की मेहनत को देखकर यह स्पष्ट होता है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज को आत्ममंथन का एक अवसर भी प्रदान करता है।
🍿⭐ Reception & Reviews
अजय देवगन और तब्बू अभिनीत यह थ्रिलर पहले भाग की कहानी को आगे बढ़ाती है। IMDb रेटिंग 8.2/10। आलोचकों ने स्क्रिप्ट, ट्विस्ट और अभिनय की सराहना की। बॉक्स ऑफिस पर 300+ करोड़ की कमाई।