Kapoor & Sons: Full Movie Recap, Iconic Quotes & Hidden Facts

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Written By moviesphilosophy

निर्देशक:

शकुन बत्रा

मुख्य कलाकार:

फ़वाद ख़ान, सिद्धार्थ मल्होत्रा, आलिया भट्ट, ऋषि कपूर, रजत कपूर, और रत्ना पाठक शाह

निर्माता:

करण जौहर, हीरू यश जौहर, अपूर्वा मेहता, शोभा कपूर, एकता कपूर

लेखक:

शकुन बत्रा, आरती शेट्टी

संगीत निर्देशक:

अमित त्रिवेदी

रिलीज़ तिथि:

18 मार्च 2016

भाषा:

हिंदी

शैली:

परिवारिक ड्रामा, कॉमेडी

यह फिल्म एक परिवार की कहानी है, जो भावनात्मक उथल-पुथल और जटिल संबंधों के बीच संतुलन खोजने की कोशिश करता है।

🎙️🎬Full Movie Recap

Movies Philosophy में आपका स्वागत है!

नमस्कार, सिनेमा प्रेमियों! मैं हूँ आपका मेजबान, और आप सुन रहे हैं Movies Philosophy, वह पॉडकास्ट जो फिल्मों के जरिए जिंदगी के फलसफे को समझने की कोशिश करता है। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जो पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं को बहुत ही खूबसूरती और भावनात्मक गहराई के साथ पेश करती है। यह फिल्म है कपूर एंड संस (सिंस 1921), जो 2016 में रिलीज हुई थी। निर्देशक शकुन बत्रा ने इस फिल्म के जरिए हमें दिखाया कि हर परिवार में कुछ अनकहे राज, कुछ अनसुलझे रिश्ते और कुछ अनछुए दर्द होते हैं। तो चलिए, इस कहानी की गहराई में उतरते हैं और देखते हैं कि कैसे कपूर परिवार की जिंदगी हमें रिश्तों का एक नया सबक सिखाती है।

परिचय: कपूर परिवार की अनकही कहानी

कपूर एंड संस एक ऐसी कहानी है जो हमें कुनूर की खूबसूरत वादियों में ले जाती है, जहां कपूर परिवार का पुराना घर बरसों से उनकी यादों और रिश्तों को समेटे खड़ा है। इस घर में रहते हैं 90 साल के अमरजीत कपूर (ऋषि कपूर), जिन्हें परिवार प्यार से दादू कहता है। उनके बेटे हर्ष (रजत कपूर) और बहू सुनीता (रत्ना पाठक शाह) भी यहीं रहते हैं। लेकिन इस परिवार के दो बेटे, राहुल (फवाद खान) और अर्जुन (सिद्धार्थ मल्होत्रा), अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हैं कि वे अपने घर से दूर, अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए हैं। राहुल लंदन में एक सफल लेखक है, जिसकी जिंदगी बाहर से परफेक्ट लगती है, जबकि अर्जुन न्यू जर्सी में अपनी पहचान तलाश रहा है, बारटेंडर की नौकरी कर रहा है और लिखने की कोशिश में जुटा है।

कहानी तब शुरू होती है, जब दादू को हार्ट अटैक आता है और दोनों भाई अपने बचपन के घर लौटने को मजबूर हो जाते हैं। लेकिन यह वापसी सिर्फ दादू की सेहत के लिए नहीं, बल्कि उनके अंदर छुपे पुराने गम, गुस्से और गलतफहमियों को सामने लाने के लिए भी है।

कहानी: रिश्तों की उलझनें और अनकहे दर्द

जब राहुल और अर्जुन कुनूर पहुंचते हैं, तो उनके बीच की दूरियां साफ नजर आती हैं। राहुल, जो परिवार का लाडला है, हमेशा से माता-पिता की नजरों में सफल और जिम्मेदार रहा है। उसका कमरा आज भी वैसा ही रखा गया है, जैसा उसने छोड़ा था। वहीं अर्जुन का कमरा स्टोरेज रूम बन चुका है, जो उसके अंदर एक टीस पैदा करता है। हर्ष, अर्जुन के करियर के फैसलों से नाराज है और जब अर्जुन बताता है कि उसने अपनी वेबसाइट का बिजनेस छोड़ दिया है और अब लिखने पर ध्यान दे रहा है, तो हर्ष गुस्से में कहते हैं, “तुम्हें कुछ समझ में आता है? हर बार नया कुछ शुरू करते हो और छोड़ देते हो!” इस पर अर्जुन तपाक से जवाब देता है, “पापा, मेरी जिंदगी में दखल मत दीजिए, आप कुछ समझते ही नहीं!”

दूसरी तरफ, हर्ष और सुनीता का रिश्ता भी तनाव से भरा है। सुनीता एक कैटरिंग बिजनेस शुरू करना चाहती हैं, लेकिन हर्ष उनका मजाक उड़ाते हैं। सुनीता गुस्से में कहती हैं, “मेरी बहन टिम्मी तो कैटरिंग बिजनेस चला रही है, आपसे ज्यादा कमा रही है!” बात तब और बिगड़ती है, जब सुनीता को पता चलता है कि हर्ष ने उनकी फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़ दी थी, ताकि अपने कर्ज चुकाएँ और अपनी पुरानी प्रेमिका अनु को तोहफे दे सकें। सुनीता का गुस्सा फूट पड़ता है और वे कहती हैं, “मैंने ये पैसे अपनी मेहनत से जोड़े थे, तुमने मुझे धोखा दिया!”

इन सबके बीच दादू की हालत गंभीर है। उन्हें इलाज के लिए बैंगलोर ले जाना है, लेकिन पैसों की तंगी के चलते परिवार में बहस छिड़ जाती है। हर्ष अपने भाई शशि से उधार लेना चाहते हैं, लेकिन सुनीता इसके खिलाफ हैं। तभी अर्जुन और राहुल भी इस बहस में कूद पड़ते हैं। राहुल, जो हमेशा से परिवार में समझदार माना जाता है, अर्जुन को ताने मारता है। गुस्से में अर्जुन कहता है, “तुम चोर हो राहुल, सब कुछ संयोग नहीं है!” इस पर सुनीता उसे चुप कराती हैं, लेकिन दोनों भाइयों के बीच की कड़वाहट साफ नजर आती है।

दादू की दो आखिरी इच्छाएं हैं – एक, सेना के ब्यूरियल ग्राउंड में अपने पुराने दोस्तों के साथ दफन होना, और दूसरा, अपने 90वें जन्मदिन पर एक पारिवारिक फोटो खिंचवाना, जिसका टाइटल होगा “कपूर एंड संस, सिन्स 1921″। दादू की इस इच्छा को पूरा करने के लिए पूरा परिवार जुट जाता है। इस बीच, अर्जुन की मुलाकात अपनी पुरानी दोस्त वसीम के जरिए टीया मलिक (आलिया भट्ट) से होती है। टीया और अर्जुन पहली ही मुलाकात में एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। लेकिन टीया की जिंदगी में राहुल की मौजूदगी अर्जुन को परेशान करती है। टीया बाद में अर्जुन से कबूल करती है कि राहुल के साथ उसकी एक गलती हुई थी, लेकिन वह अर्जुन को ही पसंद करती है।

चरमोत्कर्ष: राज खुलते हैं, रिश्ते टूटते हैं

दादू के जन्मदिन की पार्टी में सब कुछ ठीक चल रहा होता है, लेकिन तभी हर्ष की पुरानी प्रेमिका अनु के आने से माहौल बिगड़ जाता है। सुनीता गुस्से में हर्ष से लड़ पड़ती हैं और पार्टी खत्म हो जाती है। लेकिन दादू की कोशिश से परिवार एक बार फिर साथ आता है और एक फोटो खिंचवाता है। इस बीच, राहुल को पता चलता है कि हर्ष अभी भी अनु से मिल रहे हैं, जिससे उसका अपने पिता पर भरोसा टूट जाता है। उधर, सुनीता को राहुल के कंप्यूटर में कुछ तस्वीरें मिलती हैं, जिनसे पता चलता है कि राहुल का लंदन में एक पुरुष के साथ रिश्ता है। यह खुलासा सुनीता को हिला देता है।

सबसे बड़ा झटका तब लगता है, जब अर्जुन को पता चलता है कि राहुल ने उसकी लिखी कहानी पढ़ ली है। गुस्से में अर्जुन राहुल को मारने लगता है और कहता है, “तूने मेरी पहली कहानी चुराई थी, और अब ये भी लेना चाहता है? मैं तुझे कभी माफ नहीं करूंगा!” तभी सुनीता खुलासा करती हैं कि उन्होंने ही अर्जुन की कहानी राहुल को दी थी, क्योंकि उन्हें लगा कि अर्जुन कभी इसे पूरा नहीं करेगा। यह सुनकर अर्जुन टूट जाता है। उसी रात, गुस्से में हर्ष घर से निकलते हैं और एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो जाती है। इस हादसे से पूरा परिवार बिखर जाता है। राहुल और अर्जुन अपनी-अपनी जिंदगी में लौट जाते हैं, लेकिन उनके बीच की दरार और गहरी हो जाती है।

निष्कर्ष: माफी और नए रिश्ते

चार महीने बाद, दादू का एक वीडियो संदेश राहुल और अर्जुन को मिलता है, जिसमें वे दोनों को वापस बुलाते हैं। दादू कहते हैं, “अब बूढ़ा हो गया हूँ, तुम दोनों के बिना अकेला लगता है। वापस आ जाओ, बेटा।” इस संदेश के बाद दोनों भाई फिर से कुनूर लौटते हैं। सुनीता राहुल की सच्चाई को स्वीकार कर लेती हैं, और अर्जुन-टीया के बीच की गलतफहमियां भी दूर हो जाती हैं। अंत में, दादू की इच्छा पूरी होती है और पूरा परिवार एक बार फिर फोटो खिंचवाता है, जिसमें हर्ष की याद में उनका एक कटआउट रखा जाता है। फोटो का टाइटल वही होता है – “कपूर एंड संस, सिन्स 1921″।

कपूर एंड संस हमें सिखाती है कि रिश्तों में गलतफहमियां और गलतियां तो होती हैं, लेकिन प्यार और माफी से सब कुछ संभाला जा सकता है। फिल्म का एक डायलॉग जो मुझे बहुत पसंद है, वह है जब दादू कहते हैं, “परिवार वो नहीं जो कभी न लड़े, परिवार वो है जो हर लड़ाई के बाद फिर से एक हो जाए।”

तो दोस्तों, यह थी कपूर एंड संस की कहानी। अगर आपने यह फिल्म देखी है, तो हमें बताइए कि आपको इसकी कौन सी बात सबसे ज्यादा छू गई। और अगर नहीं देखी, तो जरूर देखें। Movies Philosophy के इस एपिसोड को सुनने के लिए धन्यवाद। अगली बार फिर मिलेंगे, एक नई कहानी, एक नए फलसफे के साथ। नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

तुम्हारे पापा ना, बेस्ट काम करते हैं। वो काम करते हैं, और तुम करते नहीं हो।

इस घर में तो हर किसी के पास डायलॉग है, बस स्क्रिप्ट की कमी है।

हम सबने कभी ना कभी अपनी लाइफ में ऐसा कोई पल देखा है, जब हम एकदम अकेले होते हैं।

बातें तो सब करते हैं, पर सुनता कोई नहीं।

स्कूल में हमें सिखाया जाता है कि झूठ बोलना बुरी बात है, लेकिन कभी-कभी सच बोलना भी गलत हो सकता है।

प्यार में हारना, जीतने से ज्यादा जरूरी होता है।

कभी-कभी हम किसी को इतना करीब से देखते हैं कि दूर का कुछ दिखता ही नहीं।

गलतियां तो हर किसी से होती हैं, पर माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता।

हमारी जिंदगी में आए हर तूफान के बाद एक इंद्रधनुष जरूर बनता है।

कभी-कभी सच्चाई बोलने में ही ज्यादा ताकत होती है।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म ‘कपूर एंड सन्स’ का निर्देशन शकुन बत्रा ने किया था, और यह 2016 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म के निर्माण के दौरान कई दिलचस्प बातें सामने आईं। सबसे पहले, ऋषि कपूर का इस फिल्म में 90 वर्षीय दादाजी का किरदार निभाना एक बड़ी चुनौती थी। उनके मेकअप में लगभग 5 घंटे लगते थे, जिसे ग्रेग तोमासिनो ने डिज़ाइन किया था। ऋषि कपूर ने इस किरदार के लिए अपने लुक को लेकर इतनी मेहनत की कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता था। इसके अलावा, फिल्म की कहानी को लेकर शकुन बत्रा और आयशा देवित्रे ने लगभग दो साल तक स्क्रिप्ट पर काम किया, ताकि कहानी वास्तविक और संजीदा लगे।

फिल्म के सेट पर भी कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। फवाद खान, जिन्होंने राहुल कपूर का किरदार निभाया, ने अपने किरदार की बारीकियों को समझने के लिए कई LGBTQ+ व्यक्तियों से बातचीत की। इस प्रक्रिया ने उन्हें अपने किरदार की गहराई को समझने में मदद की। इसके अलावा, सेट पर कई बार कलाकारों ने अपनी व्यक्तिगत कहानियों को साझा किया, जिससे कलाकारों के बीच एक गहरा संबंध बना। आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्रा और फवाद खान के बीच केमिस्ट्री को लेकर भी दर्शकों ने खूब सराहा, जो सेट पर उनके समय का नतीजा था।

फिल्म में छुपे कुछ ईस्टर एग्स भी हैं, जो सीधे दर्शकों की नजरों से छूट जाते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म के शुरुआती सीन में कपूर परिवार का घर असल में ऊटी के एक पुरानी हवेली में फिल्माया गया था। इस हवेली में पहले भी कई क्लासिक फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इसके अलावा, फिल्म के कई दृश्यों में तस्वीरें और पेंटिंग्स दिखती हैं, जो परिवार के रिश्तों और भावनाओं को दर्शाती हैं। इन छोटी-छोटी चीजों ने फिल्म की गहराई को और बढ़ाया है।

कपूर एंड सन्स की कहानी में पारिवारिक संघर्षों और रिश्तों की जटिलता को एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक परिवार के सदस्य अपनी-अपनी समस्याओं और रहस्यों को छिपाते हैं। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे कभी-कभी परिवार के भीतर की अनकही बातें और भावनाएं बड़े संघर्षों का कारण बन सकती हैं। फिल्म में राहुल कपूर का समलैंगिक होना और इसे परिवार से छिपाना, समाज के दबावों को समझने का एक गहरा उदाहरण है।

फिल्म ने अपने रिलीज के बाद समाज पर गहरा प्रभाव डाला। इसने पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों की जटिलताओं को नए सिरे से समझने का मौका दिया। खासकर भारतीय समाज में, जहां परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई होती है, इस फिल्म ने दर्शकों को अपने परिवार के सदस्यों के साथ अधिक खुला और ईमानदार संवाद करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही, LGBTQ+ मुद्दों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में यह फिल्म एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई।

कपूर एंड सन्स की विरासत आज भी बॉलीवुड में देखने को मिलती है। फिल्म ने न केवल अपने समय में बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि इसे समीक्षकों द्वारा भी सराहा गया। इसने युवा निर्देशकों और लेखकों को प्रेरित किया कि वे अपने कहानी कहने के तरीकों को और अधिक वास्तविक और प्रासंगिक बनाएं। इसके अलावा, परिवार और रिश्तों पर आधारित फिल्मों के लिए इसने एक नया मापदंड स्थापित किया, जो आने वाले वर्षों में कई फिल्मों में देखा गया।

🍿⭐ Reception & Reviews

शकुन बत्रा द्वारा निर्देशित, यह पारिवारिक ड्रामा दो भाइयों (सिद्धार्थ मल्होत्रा, फवाद खान) और उनके दादाजी (ऋषि कपूर) की कहानी है, जो पारिवारिक रहस्यों और रिश्तों की जटिलताओं को उजागर करती है। फिल्म को इसके प्रगतिशील थीम्स (विशेष रूप से समलैंगिकता का संवेदनशील चित्रण), शानदार अभिनय, और भावनात्मक गहराई के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 4/5 रेटिंग दी, इसे “पारिवारिक रिश्तों का यथार्थवादी चित्रण” कहा, जबकि फिल्मफेयर ने फवाद और ऋषि कपूर के प्रदर्शन की तारीफ की। रेडिफ ने इसे “आधुनिक और भावनात्मक” माना। कुछ आलोचकों ने दूसरी छमाही में गति की कमी की शिकायत की, लेकिन दर्शकों ने इसके संगीत (“कर गयी चुल”) और रिलेटेबल किरदारों को पसंद किया। यह बॉक्स ऑफिस पर हिट थी और कई फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीती, जिसमें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (ऋषि कपूर) शामिल है। Rotten Tomatoes: 100%, IMDb: 7.7/10, Times of India: 4/5, Bollywood Hungama: 4/5।

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