Thappad: Full Movie Recap, Iconic Dialogues, Review & Hidden Facts

Photo of author
Written By moviesphilosophy

Director:

Anubhav Sinha

Main Cast:

Taapsee Pannu, Pavail Gulati, Ratna Pathak Shah, Tanvi Azmi, Dia Mirza, and Kumud Mishra

Genre:

Drama

Release Date:

February 28, 2020

Production Companies:

Benaras Media Works and T-Series

Language:

Hindi

Plot Summary:

“Thappad” is a compelling drama that explores the life of Amrita, a woman who challenges societal norms after a singular incident—a slap from her husband at a party—leads her to question her marriage and her place in the world.

🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी में आपका स्वागत है!

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है हमारे पॉडकास्ट ‘मूवीज़ फिलॉसफी’ में, जहां हम भारतीय सिनेमा की गहराइयों में उतरते हैं और कहानियों के पीछे छुपे भावनाओं, संघर्षों और दर्शन को आपके सामने लाते हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की, जिसने न सिर्फ दर्शकों को झकझोरा, बल्कि रिश्तों और सम्मान के सवाल को नए सिरे से परिभाषित किया। जी हां, हम बात कर रहे हैं 2020 की फिल्म **’थप्पड़’** की, जिसे अनुभव सिन्हा ने निर्देशित किया है और तापसी पन्नू ने मुख्य भूमिका निभाई है। यह फिल्म एक साधारण-सी घटना से शुरू होती है, लेकिन यह घटना एक महिला के आत्मसम्मान और रिश्तों की नींव पर सवाल खड़े कर देती है। तो चलिए, इस कहानी को विस्तार से समझते हैं और इसके भावनात्मक पहलुओं को खोलते हैं।

परिचय: एक थप्पड़ की गूंज

‘थप्पड़’ की कहानी अमृता (तापसी पन्नू) की है, एक ऐसी महिला जो अपनी शादीशुदा जिंदगी में पूरी तरह से समर्पित है। उसकी जिंदगी बाहर से परफेक्ट लगती है, लेकिन अंदर से वह एकतरफा रिश्ते की बेड़ियों में बंधी हुई है। उसका पति विक्रम (पवैल गुलाटी) एक करियर-केंद्रित व्यक्ति है, जो घर की जिम्मेदारियों को पूरी तरह से अमृता पर डाल देता है। विक्रम के लिए अमृता की कोई अपनी पहचान नहीं, वह बस उसकी जरूरतों को पूरा करने वाली एक पत्नी है। लेकिन एक दिन, एक पार्टी में हुई एक छोटी-सी घटना अमृता की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देती है। यह घटना है एक थप्पड़ की, जो न सिर्फ अमृता के चेहरे पर पड़ता है, बल्कि उसके आत्मसम्मान और रिश्ते की सच्चाई को भी तार-तार कर देता है।

कहानी: रिश्तों की परतें खुलती हैं

अमृता और विक्रम की शादीशुदा जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा होता है, कम से कम सतह पर तो ऐसा ही लगता है। विक्रम अपनी नौकरी में व्यस्त रहता है और लंदन में अपनी कंपनी के विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन की तैयारी कर रहा है। पूरा परिवार, जिसमें अमृता की सास सुलक्षणा (तन्वी आजमी) भी शामिल हैं, इस बात से उत्साहित है कि जल्द ही विक्रम और अमृता लंदन शिफ्ट होने वाले हैं। प्रेजेंटेशन सफल रहता है और विक्रम को नौकरी मिल जाती है। इस खुशी को मनाने के लिए अमृता को आधे दिन के नोटिस पर 30-40 लोगों की पार्टी का इंतजाम करना पड़ता है।

पार्टी में सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, तभी विक्रम को अपने बॉस से एक कॉल आता है। उसे पता चलता है कि वह लंदन ऑपरेशन्स का सीईओ तो बनेगा, लेकिन उसे एक स्थानीय व्यक्ति के अंडर काम करना होगा। यह बात विक्रम को गुस्सा दिला देती है और वह अपने सीनियर राजहंस से बहस करने लगता है। अमृता, जो मेहमानों की नजरों से बचने के लिए बीच-बचाव करने की कोशिश करती है, को विक्रम बार-बार चुप रहने के लिए कहता है। लेकिन जब वह नहीं मानती, तो विक्रम गुस्से में उसे सबके सामने एक थप्पड़ मार देता है। यह थप्पड़ न सिर्फ अमृता को हिलाकर रख देता है, बल्कि उसके मन में उन सारी छोटी-छोटी अनदेखी बातों को जगा देता है, जिन्हें उसने अब तक नजरअंदाज किया था। वह सोचती है, “क्या एक थप्पड़ इतना बड़ा है कि मैं अपने रिश्ते पर सवाल उठा दूं? लेकिन क्या एक रिश्ता बिना सम्मान के चल सकता है?”

अगले दिन विक्रम न तो माफी मांगता है और न ही अपनी गलती को स्वीकार करता है। वह उल्टा अमृता को ही ताने मारता है। उसकी सास और अमृता के माता-पिता भी इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते और उम्मीद करते हैं कि अमृता सामान्य व्यवहार करे। अमृता को लगता है, “मेरी कोई कीमत ही नहीं है इस घर में।” वह टूट जाती है और अपने मायके चली जाती है। लेकिन वहां भी विक्रम उसे अपराधबोध से भरने की कोशिश करता है, कहता है, “तुम्हारा काम है मुझे सपोर्ट करना, मेरे बुरे वक्त में मेरा साथ देना।”

अमृता का भाई करण (अंकुर राठी) और उसकी मां संध्या (रत्ना पाठक शाह) उसके फैसले के खिलाफ हैं, जबकि पिता सचिन (कुमुद मिश्रा) उसका साथ देते हैं। विक्रम को जब अमृता की अहमियत समझ में आती है, तो वह उसे वापस लाने की कोशिश करता है, लेकिन अमृता साफ मना कर देती है। वह कहती है, “मुझे तुमसे प्यार नहीं रहा, विक्रम। एक थप्पड़ ने मुझे दिखा दिया कि मैं यहां न सम्मान पा रही हूं, न खुशी।”

चरमोत्कर्ष: आत्मसम्मान की लड़ाई

विक्रम गुस्से में अमृता को कानूनी नोटिस भेजता है, अपने वैवाहिक अधिकारों का हवाला देते हुए उसे घर लौटने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है। अमृता नेथ्रा (माया सराओ) को अपनी वकील के रूप में नियुक्त करती है और तलाक के लिए अर्जी देती है। विक्रम और उसका वकील प्रामद गुजराल (राम कपूर) गंदी चालें चलते हैं, अमृता पर झूठे इल्जाम लगाते हैं और अजन्मे बच्चे की एकमात्र कस्टडी की मांग करते हैं। लेकिन अमृता डटकर खड़ी रहती है। वह कहती है, “मुझे तुम्हारी संपत्ति नहीं चाहिए, विक्रम। मुझे बस यह चाहिए कि तुम समझो कि तुम्हें मुझे मारने का कोई हक नहीं था।”

नेथ्रा घरेलू हिंसा का केस दायर करती है, जिससे विक्रम की नौकरी खतरे में पड़ जाती है। आखिरकार, वह तलाक और बच्चे की संयुक्त कस्टडी के लिए राजी हो जाता है। कोर्ट में तलाक की अंतिम सुनवाई के दौरान विक्रम पहली बार अमृता से माफी मांगता है। वह कहता है, “मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, लंदन का ऑफर ठुकरा दिया। मैं वह बनने की कोशिश करूंगा, जो तुम्हारा हकदार हो।” अमृता और विक्रम तलाक के साथ एक नई उम्मीद के साथ अलग हो जाते हैं।

भावनात्मक गहराई और थीम्स

‘थप्पड़’ सिर्फ एक थप्पड़ की कहानी नहीं है, यह रिश्तों में सम्मान, बराबरी और आत्मसम्मान की बात करती है। फिल्म यह सवाल उठाती है कि क्या एक छोटी-सी घटना रिश्तों की नींव हिला सकती है? अमृता की यात्रा हमें सिखाती है कि प्यार और रिश्ते तभी सार्थक हैं, जब उनमें सम्मान हो। फिल्म में पितृसत्तात्मक सोच को भी उजागर किया गया है, जहां महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे हर स्थिति में चुप रहें और सहन करें।

कहानी में कुछ डायलॉग्स ऐसे हैं, जो दिल को छू जाते हैं और फिल्म के संदेश को गहराई देते हैं। जैसे कि अमृता का यह कहना, “बस एक थप्पड़… लेकिन नहीं सहा जाता।” यह डायलॉग उसकी पीड़ा और फैसले की दृढ़ता को दर्शाता है। एक और डायलॉग, जब वह विक्रम से कहती है, “तुम्हें लगता है मैं तुम्हारी गुलाम हूं, लेकिन मैं अपनी जिंदगी की मालिक हूं।” यह उसकी आत्मनिर्भरता को रेखांकित करता है। तीसरा डायलॉग, जब सुलक्षणा माफी मांगते हुए कहती है, “हमने गलत किया, अमृता। तुम सही कर रही हो।” यह पुरानी पीढ़ी की सोच में बदलाव की उम्मीद जगाता है। चौथा डायलॉग, जब अमृता अपने पिता से कहती है, “पापा, मैंने सहना बंद कर दिया, अब जीना शुरू करना है।” यह उसकी नई शुरुआत का प्रतीक है। और आखिरी, जब विक्रम कहता है, “मैं बदलूंगा, अमृता। तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए।” यह उसके आत्मचिंतन को दर्शाता है।

निष्कर्ष: एक नई शुरुआत

‘थप्पड़’ हमें यह सिखाती है कि रिश्तों में सम्मान और बराबरी कितनी जरूरी है। अमृता की कहानी हर उस महिला की कहानी है, जो अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ती है, भले ही उसे कितनी भी मुश्किलों का सामना करना पड़े। यह फिल्म हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने रिश्तों में सचमुच बराबरी और सम्मान देते हैं?

तो दोस्तों, यह थी ‘थप्पड़’ की कहानी, जो न सिर्फ एक फिल्म है, बल्कि एक आंदोलन है, जो महिलाओं को उनकी ताकत और हक की याद दिलाता है। हमें बताएं कि आपको यह रिकैप कैसा लगा और क्या आपने इस फिल्म से कोई सीख ली? अगले एपिसोड तक के लिए अलविदा, और देखते रहिए ‘मूवीज़ फिलॉसफी’। नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues and Quotes

“Woh ek thappad… par nahi maar sakta.”

“Mujhe bas wohi ek cheez samajh nahi aayi, ki uss ek thappad pe itna hungama kyun?”

“Pati hai, haq banta hai uska.”

“Thoda bardasht karna seekhna chahiye auraton ko.”

“Jab baat self-respect ki aati hai na, toh thoda sa bhi compromise nahi karna chahiye.”

“Mujhe kehna tha ki mujhse woh thappad bardasht nahi hua.”

“Aur kitna sehna padega, Amrita?”

“Main bas itna keh rahi hoon ki woh galat tha.”

“Kabhi-kabhi kuch galat ho jaata hai, iska matlab yeh nahi ki sab kuch khatam ho gaya.”

“Aapne mujhe thappad mara, maine sab kuch chhod diya.”

These dialogues reflect the emotional depth and societal themes that “Thappad” explores, resonating with audiences for their honesty and impact.

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म “थप्पड़” के निर्माण के दौरान कई दिलचस्प घटनाएं हुईं जो शायद कम लोग जानते हैं। इस फिल्म की स्क्रिप्ट को लिखते समय निर्देशक अनुभव सिन्हा और लेखिका मृणमयी लागू ने एक साल का समय लिया। इस अवधि के दौरान उन्होंने विभिन्न महिलाओं के अनुभवों का अध्ययन किया ताकि कहानी का हर पहलू वास्तविकता के करीब हो सके। फिल्म की शूटिंग के दौरान तापसी पन्नू ने खुद को अमृता के किरदार में ढालने के लिए कई वर्कशॉप्स में भाग लिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह किरदार की भावनात्मक गहराई को सही ढंग से पकड़ सकें, तापसी ने मनोवैज्ञानिकों से भी सलाह ली।

फिल्म में कई ईस्टर एग्स छिपे हुए हैं जो दर्शकों की पैनी नजर का इंतजार करते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म के कई दृश्यों में दीवारों पर लटकी पेंटिंग्स घरेलू हिंसा के खिलाफ संदेश देती हैं। इन पेंटिंग्स का चयन विशेष रूप से कहानी के थीम को गहराई देने के लिए किया गया था। इसके अलावा, फिल्म के संगीत में कई बार पृष्ठभूमि में हल्की-फुल्की धुनें बजती हैं जो अमृता की आंतरिक उथल-पुथल को दर्शाती हैं। यह कलाकारों और संगीतकारों की एक संयुक्त कोशिश थी जो दर्शकों को कहानी की गहराई में खींचने में सफल रही।

फिल्म के पीछे छिपे मनोविज्ञान को समझना भी बेहद दिलचस्प है। “थप्पड़” केवल शारीरिक हिंसा की कहानी नहीं है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक आघात की कहानी भी है। फिल्म दर्शाती है कि कैसे एक थप्पड़ का प्रभाव एक महिला के आत्मसम्मान और उसकी पहचान पर पड़ता है। अमृता का किरदार दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि एक हिंसात्मक रिश्ते में खुद को कहाँ खड़ा करना चाहिए। यह फिल्म यह सवाल उठाती है कि क्या एक थप्पड़ सहन करना सही है या नहीं, और इसे समाज में महिलाओं के आत्मसम्मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।

फिल्म के सेट पर एक और दिलचस्प किस्सा यह है कि तापसी पन्नू और पावेल गुलाटी के बीच के थप्पड़ वाले सीन को कई बार शूट किया गया था। निर्देशक अनुभव सिन्हा चाहते थे कि वह सीन बिल्कुल परफेक्ट हो ताकि दर्शकों को असहज कर सके और उन्हें सोचने पर मजबूर करे। इस सीन को शूट करने के बाद सेट पर सन्नाटा छा गया था, क्योंकि सभी कलाकार और क्रू इस बात से प्रभावित हुए थे कि एक थप्पड़ का क्या प्रभाव हो सकता है।

“थप्पड़” ने समाज पर एक गहरा प्रभाव डाला है। इसकी कहानी ने दर्शकों को अपने रिश्तों और समाज में महिलाओं की स्थिति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया। फिल्म ने घरेलू हिंसा के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया, जिसने लोगों को इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, फिल्म ने सामाजिक मीडिया पर भी एक बड़ी बहस छेड़ी, जहां लोगों ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए और इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के लिए एकजुट हुए।

फिल्म की विरासत भी उल्लेखनीय है। “थप्पड़” ने न केवल एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश दिया बल्कि भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर साबित हुई। इसने यह साबित किया कि एक फिल्म सामाजिक मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से पेश कर सकती है और दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर कर सकती है। “थप्पड़” ने अन्य फिल्म निर्माताओं को भी प्रेरित किया कि वे सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाएं और इस तरह की कहानियों को मुख्यधारा में लाएं। यह फिल्म भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसे एक क्लासिक के रूप में लंबे समय तक याद किया जाएगा।

🍿⭐ Reception & Reviews

अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित, यह ड्रामा तापसी पन्नू को एक ऐसी महिला के रूप में दिखाता है, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती है। फिल्म को इसके शक्तिशाली संदेश, तापसी के अभिनय, और सामाजिक टिप्पणी के लिए सराहा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 4/5 रेटिंग दी, इसे “प्रभावशाली और प्रासंगिक” कहा। रेडिफ ने इसके संवादों और सहायक कलाकारों (पावेल गुलाटी) की तारीफ की। कुछ आलोचकों ने एकतरफा दृष्टिकोण की शिकायत की, लेकिन दर्शकों ने इसके संदेश को पसंद किया। यह बॉक्स ऑफिस पर औसत थी, लेकिन ओटीटी पर लोकप्रिय रही। Rotten Tomatoes: 83%, IMDb: 7.0/10, Times of India: 4/5, Bollywood Hungama: 4/5।

Leave a Comment