Tumbbad: Full Movie Recap, Dialogues, Hidden Facts, & Review in Hindi

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Written By moviesphilosophy

निर्देशक

फिल्म “तुम्बाड” का निर्देशन राही अनिल बर्वे और आनंद गांधी ने किया है। राही अनिल बर्वे ने इस फिल्म के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाया, जो इसे भारतीय सिनेमा में एक अनूठा स्थान देता है।

मुख्य कलाकार

“तुम्बाड” में मुख्य भूमिका में सोहम शाह नजर आते हैं। उनके अलावा फिल्म में ज्योति मालशे, अनिता दाते, और दीपक दामले ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। इन प्रतिभाशाली कलाकारों ने फिल्म की कहानी को जीवंत बना दिया है।

निर्माता

इस फिल्म का निर्माण सोहम शाह, आनंद एल. राय, और मुकेश शाह ने मिलकर किया है। इन निर्माताओं के सहयोग से इस फिल्म की प्रोडक्शन गुणवत्ता उच्च स्तर की रही है।

संगीत

फिल्म का संगीत अजय-अतुल ने तैयार किया है, जिन्होंने अपने संगीत के माध्यम से कहानी को और भी प्रभावशाली बना दिया है।

रिलीज़ वर्ष

“तुम्बाड” का प्रीमियर 2018 में हुआ था और यह अपनी अनोखी कहानी और निर्देशन के लिए काफी प्रशंसा प्राप्त कर चुकी है।

फिल्म की कहानी

फिल्म “तुम्बाड” की कहानी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव तुम्बाड में स्थित है। यह एक रहस्यमयी और भयानक कथा है जो लालच और भय के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म के विशेष दृश्य और प्रभावशाली सिनेमैटोग्राफी इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं।

🎙️🎬Full Movie Recap

मूवीज़ फिलॉसफी में आपका स्वागत है!

नमस्ते, दोस्तों! मूवीज़ फिलॉसफी पॉडकास्ट में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। यहाँ हम फिल्मों की गहराई में उतरते हैं, उनकी कहानियों को फिर से जीते हैं और उनसे मिलने वाले जीवन के सबक को समझते हैं। आज हम बात करेंगे 2018 की एक ऐसी फिल्म की, जिसने न सिर्फ भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा, बल्कि दर्शकों को डर, लालच और मानव स्वभाव की गहराइयों में ले जाकर झकझोर दिया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं फिल्म **‘तुम्बाड’** की। यह एक पीरियड फोल्क हॉरर फिल्म है, जिसने अपनी अनूठी कहानी, शानदार सिनेमैटोग्राफी और गहरे संदेश के साथ दुनियाभर में तारीफें बटोरीं। तो चलिए, इस रहस्यमयी और डरावनी कहानी की यात्रा पर निकलते हैं, जहाँ लालच की आग इंसान को कहाँ तक ले जा सकती है, यह देखेंगे।

परिचय: तुम्बाड की रहस्यमयी दुनिया

‘तुम्बाड’ फिल्म हमें ले जाती है महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव तुम्बाड में, जहाँ बारिश कभी थमती नहीं और एक प्राचीन मंदिर में छुपा है एक ऐसा खजाना, जिसके पीछे हर कोई पागल है। फिल्म का निर्देशन किया है राहि अनिल बर्वे ने, और इसमें मुख्य किरदार विनायक राव की भूमिका निभाई है सोहम शाह ने। यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत से लेकर भारत की आजादी तक के समय को दर्शाती है और लालच, पाप और पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं को बखूबी उकेरती है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी इतनी जबरदस्त है कि हर फ्रेम में तुम्बाड की गीली, अंधेरी और रहस्यमयी दुनिया जीवंत हो उठती है। तो चलिए, इस कहानी को शुरू से समझते हैं।

कहानी: लालच की आग में जलता विनायक

कहानी की शुरुआत होती है 1918 से, जहाँ विनायक राव अपनी माँ और भाई सदाशिव के साथ तुम्बाड में रहता है। विनायक की माँ स्थानीय जमींदार सरकार की रखैल है और वह सरकार के रहस्यमयी खजाने की लालसा में जी रही है। घर में एक बूढ़ी औरत है, जिसे जंजीरों से बांधकर रखा गया है। वह एक भयानक रहस्य की रक्षक है, लेकिन उसकी हालत देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक दिन सदाशिव पेड़ से गिरकर घायल हो जाता है और माँ उसे इलाज के लिए ले जाती है। इस बीच विनायक बूढ़ी औरत को खाना देने जाता है, लेकिन वह भाग निकलती है और विनायक को खाने की कोशिश करती है। विनायक डर में हस्तर का नाम लेता है, और वह औरत नींद में चली जाती है। इस घटना से विनायक का डर और जिज्ञासा दोनों बढ़ते हैं।

जल्द ही सरकार और सदाशिव की मृत्यु हो जाती है, और विनायक की माँ उसे लेकर पुणे चली जाती है। नाव पर माँ उसे कसम दिलाती है, “बेटा, कभी तुम्बाड वापस मत जाना। वह जगह शापित है।” लेकिन लालच की आग तो मन में लग चुकी थी। पंद्रह साल बाद, गरीबी से तंग आकर विनायक तुम्बाड लौटता है। वहाँ वह फिर से उस बूढ़ी औरत से मिलता है, जिसके शरीर से अब एक पेड़ उग आया है। वह औरत उसे सरकार के खजाने का रहस्य बताती है और कहती है, “अगर तू मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा, तो मैं तुझे हस्तर का खजाना बता दूँगी।” विनायक उसकी बात मान लेता है।

हस्तर का खजाना और लालच की शुरुआत

बूढ़ी औरत विनायक को सरकार के हवेली में ले जाती है, जहाँ एक गुप्त रास्ता है जो सीधे देवी के गर्भ तक जाता है। वहाँ हस्तर, जो समृद्धि की देवी का पहला पुत्र है, अनंत काल से भूखा बैठा है। हस्तर को देवी का सोना तो मिल गया था, लेकिन अनाज की लालसा में वह अन्य देवताओं के क्रोध का शिकार हो गया। देवी ने उसे अपने गर्भ में छुपाकर बचा लिया, लेकिन शर्त यह थी कि उसे भुला दिया जाएगा। मगर तुम्बाड के लोगों ने उसकी पूजा शुरू कर दी, जिसके कारण गाँव पर शाप गिरा और बारिश कभी रुकी ही नहीं।

विनायक को हस्तर से सोने के सिक्के चुराने का तरीका सिखाया जाता है। वह एक रस्सी के सहारे गर्भ में उतरता है, आटे से एक घेरा बनाता है ताकि हस्तर उस तक न पहुँचे, और आटे की गुड़िया से हस्तर को लुभाता है। जब हस्तर गुड़िया की ओर जाता है, विनायक उसकी कमर से सिक्के चुरा लेता है और भाग निकलता है। यह दृश्य इतना डरावना है कि दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं। पहली बार खजाना पाकर विनायक की आँखों में चमक आती है और वह कहता है, “अब गरीबी मेरे पास भी नहीं फटकेगी। ये सोना मेरा है, सिर्फ मेरा!”

वह बार-बार तुम्बाड लौटता है, सिक्के चुराता है और पुणे में अपने दोस्त राघव को बेचता है। राघव को शक होता है कि विनायक इतना धन कहाँ से ला रहा है। वह विनायक को शराब पिलाकर और उसकी रखैल से जासूसी करवाकर सच जानने की कोशिश करता है। एक दिन वह विनायक का पीछा करता है और तुम्बाड पहुँच जाता है। विनायक उसे चकमा देकर देवी के गर्भ में भेज देता है, जहाँ हस्तर उसे मार डालता है। विनायक राघव को जलाकर कहता है, “लालच की सजा यही है, राघव। जो मेरा है, वो सिर्फ मेरा रहेगा।”

चरमोत्कर्ष: लालच का अंत और बलिदान

साल 1947 आते-आते विनायक पूरी तरह से लालच और ऐय्याशी में डूब चुका है। उसका पारिवारिक जीवन बिखर गया है। वह अपने बेटे पांडुरंग को भी इस खजाने की लालसा में खींच लेता है और उसे हस्तर से सिक्के चुराने की ट्रेनिंग देता है। पांडुरंग को वह सख्त हिदायत देता है, “कभी आटे की गुड़िया मत ले जाना, वरना हस्तर हमें खा जाएगा।” लेकिन पांडुरंग गलती कर बैठता है और हस्तर उन पर हमला कर देता है। दोनों किसी तरह बच निकलते हैं।

इसी बीच विनायक को पता चलता है कि आजाद भारत की सरकार ने सरकार की हवेली पर कब्जा कर लिया है। वह आखिरी बार ज्यादा से ज्यादा सोना निकालने की योजना बनाता है। पांडुरंग सुझाव देता है कि कई गुड़ियाओं से हस्तर को लुभाकर उसकी पूरी कमरबंद चुरा लें। मगर यह योजना उलटी पड़ जाती है। हस्तर कई रूपों में बँट जाता है और दोनों को फँसा लेता है। आखिरी बार विनायक अपने बेटे को बचाने के लिए खुद को बलिदान कर देता है। वह गुड़ियाओं को अपने शरीर से बाँध लेता है ताकि हस्तर उस पर हमला करे और पांडुरंग भाग सके। बाहर निकलकर पांडुरंग देखता है कि विनायक अब शापित हो चुका है। विनायक उसे कमरबंद देता है, लेकिन पांडुरंग मना कर देता है और कहता है, “बाबूजी, ये लालच हमें तबाह कर देगा। मैं इसे नहीं लूँगा।” वह हस्तर का नाम लेकर विनायक को सुला देता है और उसे जला देता है। इसके साथ ही वह तुम्बाड को हमेशा के लिए छोड़ देता है।

निष्कर्ष: लालच का शाप और सबक

‘तुम्बाड’ सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं है, बल्कि यह मानव स्वभाव के सबसे अंधेरे पहलू—लालच—की कहानी है। फिल्म हमें सिखाती है कि लालच की कोई सीमा नहीं होती, और यह न सिर्फ हमें बल्कि हमारे अपनों को भी तबाह कर देता है। विनायक की कहानी हमें आईना दिखाती है कि हम कितना भी हासिल कर लें, अगर मन में संतोष नहीं है, तो सब बेकार है। फिल्म का एक डायलॉग गूँजता रहता है, “सपने बड़े हैं, पर लालच उनसे भी बड़ा है।”

सोहम शाह का अभिनय, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और डरावना माहौल इसे एक मास्टरपीस बनाते हैं। ‘तुम्बाड’ हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम भी कहीं विनायक की तरह अपने लालच के पीछे भाग रहे हैं? अंत में पांडुरंग का फैसला हमें उम्मीद देता है कि इस शापित चक्र को तोड़ा जा सकता है। तो दोस्तों, आप क्या सोचते हैं? लालच और संतोष के बीच आप कहाँ खड़े हैं? हमें जरूर बताएँ। मूवीज़ फिलॉसफी से आज के लिए इतना ही। अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। नमस्ते!

🎥🔥Best Dialogues from Tumbbad (Hindi)

सुना है, हर एक खजाने की कीमत होती है।

जिसके पास जितना ज्यादा होता है, उसे उतना ही और चाहिए।

डर और लालच का खेल कुछ और ही होता है।

तुम्बाड का खजाना, हर किसी के लिए नहीं है।

सोने की लंका जल गई, मगर हवस नहीं जली।

हस्तर को कभी मत जगाना।

लालच बुरी बला है, इससे बचकर रहना।

जो तूफान से बचना चाहते हैं, उन्हें कभी पानी में नहीं उतरना चाहिए।

चाहे कितना भी छुपा लो, खजाने की ख्वाहिश कभी नहीं छुपती।

जितना खून बहाओगे, उतना ही लालच बढ़ेगा।

फिल्म “Tumbbad” (2018) — आनंद गांधी, राही अनिल बर्वे और आदेश प्रसाद की इस हॉरर-फैंटेसी-थ्रिलर — में डायलॉग्स कम हैं, लेकिन जितने भी हैं, वे गहरे, रहस्यमयी और प्रतीकात्मक हैं। ये संवाद लालच, पौराणिकता और इंसानी कमजोरी पर करारा वार करते हैं।

  1. “लालच ही हर पाप की जड़ है।”
    👉 फिल्म की मुख्य थीम और चेतावनी।

  2. “बारिश कभी रुकती नहीं इस गाँव में… जैसे लालच कभी खत्म नहीं होता।”
    👉 वातावरण और इंसानी प्रवृत्ति का खूबसूरत मेल।

  3. “दुनिया में सबसे बड़ा खजाना, सबसे बड़ा अभिशाप भी हो सकता है।”
    👉 हैस्टर के खजाने का संकेत।

  4. “जब तक पेट में भूख है… तब तक लालच ज़िंदा है।”
    👉 मानवीय लालच का शाश्वत सत्य।

  5. “तुम हैस्टर के बच्चे हो… और उसका खून तुम्हारी रगों में बहता है।”
    👉 खून के रिश्ते और अभिशाप का डर।

  6. “खजाने की रक्षा करना आसान नहीं… खजाने का मालिक बनना उससे भी मुश्किल।”
    👉 ताकत और जिम्मेदारी की कीमत।

  7. “हैस्टर से सौदा करना मतलब अपनी रूह गिरवी रखना।”
    👉 खतरनाक सौदे की चेतावनी।

🎭🔍 Behind-the-Scenes & Trivia

फिल्म ‘तुम्बाड’ ने अपनी रहस्यमयी और भयानक कहानी से दर्शकों को मोहित किया है, लेकिन इसके निर्माण के पीछे कई रोचक तथ्य छिपे हुए हैं। इस फिल्म की शूटिंग में कुल 6 साल का समय लगा, क्योंकि निर्देशक राही अनिल बर्वे और उनकी टीम को सही मौसम और लोकेशन का इंतजार करना पड़ा। फिल्म की शुरुआत 2012 में हुई थी, लेकिन इसे 2018 में रिलीज किया गया। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपनी तरह की पहली फिल्म है, जिसमें इतना लंबा और धैर्यपूर्ण निर्माण समय लगा। इस धैर्य का नतीजा है कि फिल्म ने दर्शकों को एक अद्वितीय और प्रामाणिक अनुभव दिया।

‘तुम्बाड’ की शूटिंग के दौरान कई ऐसे दृश्य थे, जो विशेष प्रभावों के बिना फिल्माए गए। उदाहरण के लिए, बारिश के दृश्यों को वास्तविकता में फिल्माने के लिए, पूरी टीम को लगातार कई घंटों तक भारी बारिश में भीगना पड़ा। इसके अलावा, फिल्म में दिखाए गए विशालकाय देवता हस्तर का मुखौटा मैन्युअल रूप से बनाया गया था, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह वास्तव में डरावना और असली लगे। इस तरह की छोटी-छोटी बातों ने फिल्म की यथार्थता को बढ़ा दिया और दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले गए।

फिल्म में कई ईस्टर एग्स भी छिपे हुए हैं, जिन्हें हर बार देखने पर दर्शक नए ढंग से देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म में बार-बार दिखाया जाने वाला लाल रंग का कपड़ा लालच और खून का प्रतीक है। यह कपड़ा कहानी के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर दिखाई देता है, जिससे दर्शकों को पात्रों के लालच का प्रतीकात्मक अर्थ समझने में मदद मिलती है। इसके साथ ही, फिल्म में दिखाए गए पुराने किले और घर भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहराई को भी दर्शाते हैं, जो दर्शकों को बार-बार कुछ नया सोचने पर मजबूर करते हैं।

‘तुम्बाड’ के पीछे की मनोविज्ञान भी बहुत दिलचस्प है। फिल्म लालच और मानव स्वभाव की गहराईयों को छूती है। कहानी का मुख्य पात्र विनायक राव अपने लालच के कारण न केवल अपनी जिंदगी को, बल्कि अपने परिवार की जिंदगी को भी खतरे में डाल देता है। यह कहानी दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि किस हद तक हम अपने लालच के लिए जा सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप क्या खो देते हैं। यह फिल्म लालच के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की गहराई से पड़ताल करती है, जो इसे एक गहन और विचारोत्तेजक अनुभव बनाता है।

फिल्म के प्रभाव और विरासत की बात करें तो, ‘तुम्बाड’ ने भारतीय सिनेमा में हॉरर और फैंटेसी जॉनर के लिए एक नई दिशा स्थापित की है। इसने भारतीय फिल्म निर्माताओं को दिखाया कि सीमित बजट में भी एक उत्कृष्ट और प्रभावशाली फिल्म बनाई जा सकती है। फिल्म ने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशंसा प्राप्त की, जिससे भारतीय सिनेमा को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान मिली। यह फिल्म न केवल एक मनोरंजक कहानी कहती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और मिथकों की गहराई को भी उजागर करती है।

अंत में, ‘तुम्बाड’ ने एक सशक्त संदेश दिया है कि किस प्रकार लालच और भूख इंसान को उसके विनाश की ओर ले जाते हैं। इसने दर्शकों को अपनी कहानी और सिनेमाटोग्राफी से बांध कर रखा, और एक ऐसे अनुभव की पेशकश की जो लंबे समय तक यादगार रहेगा। इस फिल्म ने यह साबित किया कि भारतीय सिनेमा में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वाली कहानियों को प्रस्तुत करने की क्षमता है। ‘तुम्बाड’ की विशेषता यह है कि यह फिल्म जितनी बार देखी जाए, हर बार कुछ नया सिखाती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।

🍿⭐ Reception & Reviews

यह रहा फिल्म “Tumbbad” (2018) का एक विस्तृत मूवी रिव्यू और रेटिंग्स सेक्शन, जिसे आप अपने ब्लॉग पोस्ट में इस्तेमाल कर सकते हैं:


🌧️ फिल्म समीक्षा: Tumbbad (2018)

निर्देशक: राही अनिल बर्वे, आदेश प्रसाद, आनंद गांधी
मुख्य कलाकार: सोहम शाह, मोहम्मद समाद, ज्योति मालशे, अनीता दाते
शैली: हॉरर, फैंटेसी, थ्रिलर
रिलीज़: 12 अक्टूबर 2018


📖 कहानी का सार:

Tumbbad एक अनोखी फैंटेसी-हॉरर कहानी है, जो 20वीं सदी के महाराष्ट्र के एक काल्पनिक गाँव तुम्बाड में सेट है। यह कहानी लालच और अभिशाप के इर्द-गिर्द घूमती है। विनायक राव (सोहम शाह) अपने बचपन में हैस्टर नामक एक पौराणिक देवता के खजाने के रहस्य से जुड़ता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, यह लालच उसकी जिंदगी और रिश्तों को निगलने लगता है।


🎬 निर्देशन और पटकथा:

राही अनिल बर्वे और टीम ने फिल्म को एक डार्क फोकटेल की तरह प्रस्तुत किया है। स्क्रिप्ट में पौराणिकता, डर और इंसानी भावनाओं का शानदार संतुलन है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और सेट डिजाइन ऐसा माहौल बनाते हैं कि दर्शक खुद को 1910–1947 के महाराष्ट्र में महसूस करता है।


🎭 अभिनय:

  • सोहम शाह ने विनायक राव के किरदार में अद्भुत काम किया है। उनके चेहरे के भाव लालच, डर और पछतावे को एक साथ बयां करते हैं।
  • मोहम्मद समाद और अन्य सह-कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं में सटीकता रखी है।

🎵 संगीत और तकनीकी पक्ष:

  • बैकग्राउंड स्कोर डर और सस्पेंस को और गहरा करता है।
  • सिनेमैटोग्राफी (Pankaj Kumar) फिल्म की असली जान है — बारिश, अंधेरा, और प्राचीन सेटिंग इतनी वास्तविक लगती है कि यह खुद एक किरदार बन जाती है।
  • प्रोडक्शन डिजाइन और VFX इतने डिटेल्ड हैं कि हैस्टर और खजाने का रहस्य असल लगता है।

📣 Reception (दर्शकों और समीक्षकों की प्रतिक्रिया)

🎯 समीक्षकों की राय:

  • The Hindu: “A masterpiece in Indian fantasy-horror, rich in atmosphere and allegory.”
  • Film Companion: “Tumbbad is a visual and thematic triumph. Rarely do Indian films take such bold leaps into genre filmmaking.”
  • अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में भी इसे खूब सराहा गया, खासकर इसके आर्ट डिजाइन और सिनेमैटोग्राफी के लिए।

👥 दर्शकों की प्रतिक्रिया:

  • दर्शकों ने इसे “भारतीय सिनेमा की सबसे अनोखी और खूबसूरत हॉरर-फैंटेसी” कहा।
  • सोशल मीडिया पर #Tumbbad और #Hastar ट्रेंड करते रहे।
  • फिल्म को कई बार थिएटर में और बाद में OTT पर cult following मिली।

📊 Ratings (औसत रेटिंग्स)

प्लेटफॉर्म रेटिंग
IMDb 8.2 / 10
Rotten Tomatoes 95% (critics), 90% (audience)
Google Users 93% ने पसंद किया
Hindustan Times 4.5 / 5
Indian Express 4 / 5

💡 Verdict (अंतिम निष्कर्ष):

Tumbbad सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं है — यह एक पौराणिक चेतावनी है कि लालच का अंत विनाश ही है। यह भारतीय सिनेमा की उन दुर्लभ फिल्मों में से है जो विजुअल्स, कहानी और प्रतीकवाद में इंटरनेशनल लेवल की है।


🌟 रेटिंग: 4.5 / 5


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राही अनिल बर्वे निर्देशित यह फैंटेसी-हॉरर फिल्म भारतीय सिनेमा में एक अनोखा विजुअल अनुभव मानी जाती है। IMDb रेटिंग 8.2/10। आलोचकों ने इसकी सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर और लोककथाओं पर आधारित कहानी की खूब सराहना की। इसे कल्ट स्टेटस प्राप्त हुआ और इसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में सराहा गया।

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